धूल के फ़ूल
धूल से चिपककर
हाथों से पीटकर
मुंह डालकर रेत
खिलखिलाता बचपन
सड़क है पर रुकी वहीँ
मॉल है पर जाऊँ नहीं
नल है पर पानी नहीं
माँ है पर हाज़िर नहीं
आसमान है धूप का छाता
ज़मीन ही है सर्कस हमारा
थोड़े से टूटे खिलौने हैं
और तोड़ सकें इतने तो बचे हैं
पता नहीं गोद क्या है
बस बैठी रहूँ वहीं ये 'सीख' है
ये रेत का कुरकुरा स्वाद
पों-पों की आवाज मेरा बचपन है
कॉपी-किताब, नए कम्पास
ऐसे बुरे शौक नहीं मेरे
जो मिले वो खाना
न मिले तो गुनगुनाना ....... मेरा जीवन है।
हाथों से पीटकर
मुंह डालकर रेत
खिलखिलाता बचपन
सड़क है पर रुकी वहीँ
मॉल है पर जाऊँ नहीं
नल है पर पानी नहीं
माँ है पर हाज़िर नहीं
आसमान है धूप का छाता
ज़मीन ही है सर्कस हमारा
थोड़े से टूटे खिलौने हैं
और तोड़ सकें इतने तो बचे हैं
पता नहीं गोद क्या है
बस बैठी रहूँ वहीं ये 'सीख' है
ये रेत का कुरकुरा स्वाद
पों-पों की आवाज मेरा बचपन है
कॉपी-किताब, नए कम्पास
ऐसे बुरे शौक नहीं मेरे
जो मिले वो खाना
न मिले तो गुनगुनाना ....... मेरा जीवन है।
Comments
Post a Comment
SHARE YOUR VIEWS WITH READERS.