Bhrashtaachar par karen Prahaar

मानव जाति ने अपने अस्तित्व और प्रसार के लिए अनेक युद्ध लड़े हैं, राजशक्ति से, पडोसी से, भाई से और यहाँ तक की जानवरों से भी परन्तु यह पहली बार देखने में आ रहा है कि अच्छाई और बुराई के बीच  जंग भ्रष्टाचार जैसे आत्मार्पित विषय पर हो रही है वो भी १२१ करोड़ जनसँख्या वाले लोकतांत्रिक देश में | आश्चर्य इसलिए हो रहा है की लोकतंत्र को अक्सर भीड़ तंत्र कहा जाता है, ऐसी व्यवस्था जिसमे सबको बोलने की आजादी है और इसलिए कभी किसी विषय पर जनता का एकमत होना संभव नहीं होता है |

इसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था का फायदा उठाते हुए हमारे हुक्मरान  आज तक हमें आपस में धर्म, जाति के नाम पर  लड़वाते रहे हैं | उन्हें पता है की भारत की जनता की याददाश्त बहुत कमजोर है और यह भी कि हम आपस में ही लड़ने में सिद्ध हस्त हैं | यह सच है कि सिविल सोसायटी कुछ ५ लोगों का एक छोटा सा समूह है जो पूरे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करता है परन्तु यह भी सच है की हम अन्ना हजारे, किरण बेदी, जस्टिस हेगड़े पर शक भी नहीं करते | अरविन्द केजरीवाल आज युवाओं के पसंदीदा नेता के रूप में उभर रहे हैं और भूषण परिवार अपनी चतुराई से सरकारी दांव-पेंच संभालने में सक्षम साबित हो रहे हैं वहीं सरकार के पक्ष से कपिल सिब्बल सरकार की किरकिरी करा रहे हैं | ऐसे में, जनता के लिए यह सुनहरा अवसर है जब वह एक मंच पर खड़ी होकर आपस में ना लड़े और सबकी भलाई चाहने वाले इस समूह को अपना पूर्ण सहयोग दे | 

नई पीढी को राजनीति से पूर्णतः विमुख होने से बचाने में सिविल सोसायटी का योगदान कोँग्रेस के युवराज राहुल गाँधी से कहीं ज्यादा है और सच तो यह है की बाबा रामदेव और अन्ना हजारे के अनशन ने राहुल गाँधी के निम्न वर्ग के प्रति प्रेम की सच्चाई उजागर कर दी है | भ्रष्टाचार केवल ए .राजा, कलमाणी और येदियुरप्पा  की बपौती नहीं है, कई दशकों से ये एक रिवाज का रूप ले चुका है जो की देश के गरीब तबके को बहुत कष्ट दे रहा है | कहाँ से ये गरीब तबका अपनी नौकरी के लिए रिश्वत लाये? कहाँ से ये गरीब जनता घर और दुकान लगाने के लिए बाबुओं को पैसे खिलाये? दवा, दूध, तेल जैसी जीवनोपयोगी वस्तुओं में हो रही मिलावट केवल त्योहारों में पकड़ी जाती है, बाकी साल का क्या जब ये लोगों की जान से खेल रहे होते है? सिविल सोसायटी द्वारा प्रस्तुत तर्क कि लोकपाल निम्न स्तर के अधिकारीयों पर भी लागू हो पूरी तरह सही है | 

कोई तो उपाय होना चाहिए जिससे कि भ्रष्टाचार में लिप्त बाबुओं के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही की जा सके और उन्हें उनके किये की सजा दी जा सके | ऐसे में सरकारी लोकपाल बिल की पंगुता यही दर्शाती है कि नेता अभी तक जनता का मिजाज नहीं समझ पाए हैं अपितु सभी दलों को समर्थन में लेकर अन्ना के १६ अगस्त के उपवास को भी बाबा रामदेव के आन्दोलन की ही तरह कुचलना चाहते हैं | सोचिये तो जरा, हमारे देश में गांधीजी के प्रमुख अस्त्र अनशन को करने के लिए सरकार सिविल सोसायटी को जगह तक उपलब्ध नहीं करा रही है, क्यों भला? जब हजारों लोग फ़िल्मी सितारों का शो देखने जा सकते हैं, भारत -पाक के मैच देखने जा  सकते  हैं तो देश की भलाई के लिए हो रहे अनशन का हिस्सा बनने के लिए क्यों एकत्रित नहीं हो सकते हैं ? अन्ना हजारे ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वो पूर्णतः अहिंसक आन्दोलन करना चाहते हैं जो व्यवस्था के खिलाफ है ना कि यूपीए के खिलाफ |

मेरी राय में, सरकार को बिना डरे जनता की  इस पहल का स्वागत  करना चाहिए और संसद में एक अच्छा मसौदा पेश करना चाहिए क्योंकि समय के साथ परिवर्तन अवश्यम्भावी है | अधिकारों से युक्त लोकपाल सभी दलों के काम आएगा, जनता का अमूल्य धन विदेशी बैंकों में ना जमा होकर देश कि संचित निधि में जमा होगा और विकास में उसका सही उपयोग होगा | हालाँकि यह सच है कि कागज़ में लिखी बातें जब हकीक़त से रूबरू होती हैं तो उतनी असरदार नहीं दिखती हैं पर कहते हैं ना, ना मामा से काना मामा अच्छा | देश एक अच्छी लोकपाल व्यवस्था चाहता है जिसमे निम्न से उच्च वर्ग तक सभी जनसेवक शामिल होने चाहिए, यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट के जज और प्रधानमत्री भी, साथ ही लोकपाल की कार्यप्रणाली पारदर्शी और दबाव रहित हो और एक निश्चित समय में जनता को न्याय दे सके | अब जनता की बारी है 'सरकार' को यह दिखाने की कि हम और भ्रष्टाचार नहीं होने देंगे | हम जहाँ हैं वहीँ से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे और अपने स्तर पर देश के इस 'दुश्मन' को भगा कर रहेंगे | सभी देशवासियों को इस मुद्दे पर सरकार द्वारा आन्दोलनकारियों के प्रति किये जा रहे दुष्प्रचार का और अत्याचार मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए और भ्रष्टाचार पर ऐसा प्रहार करना चाहिए कि यह दानव फिर कभी बेशरमों कि तरह हमारे देश के सामने ना आ सके |

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