जय भारती !


हमारे ईमानदार अफसर एक के बाद एक सिस्टम की भेंट चढ़ रहे हैं .... एक ऐसा सिस्टम जो केवल ईमानदारों को निशाना बनाता है , राजा और कलमाड़ी को नहीं ।शरद पवार को एक थप्पड़ पड़ा और पूरा देश सरदार जी के साथ खड़ा हो गया। ये नक्सलियों और अलगाववादी कश्मीरियों को क्यों नहीं दिखता ? क्योंकि वो देखना ही नहीं चाहते हैं। सब सोच समझ कर योजनाबद्ध तरीके से किया जा रहा है ताकि जनता और प्रशासन में फूट पड़ जाये और अराजकता फ़ैल जाये। इस बात में भी संदेह है की एस पी राहुल शर्मा की हत्या हुई थी या उन्होंने आत्महत्या ही की थी। मुझे यह एक गहरा षड़यंत्र नजर आता है। सिर्फ एक अफसर नहीं अपितु अपने देश के साथ ।


मुख्य बात से ध्यान हटाने के लिए ही ईमानदार और सीधे लोगों को आरोपी बनाया जाता है । आज यह बात साबित हो गई । यह कितना गलत है केवल वाही समझ सकता है जिसने इस पीड़ा को सहा हो । ये तुच्छ राजनीति मात्र गलत इरादों का बचाव करती है , इसे जनता को समझना चाहिए . बोफोर्स मामले में क्वात्रिच्ची को बचने के लिए ही अमिताभ बच्चन का नाम घसीटा गया ताकि जनता का ध्यान मुख्य मुद्दे से दूर हो जाये। पर इसमें बच्चन परिवार को जो पीड़ा सहनी पड़ी उसका क्या ?

आज माओवादी नक्सली सीधे सादे अफसरों और नेताओं को पकड़ रहे हैं ताकि जन भावनाओं से खेल सकें। जनता को पूरे तौर पर ऐसे षड्यंत्रों को एक किनारे कर विकास और सद्भावना का साथ देना चाहिए। मैं भारत की एकता और अखंडता में विश्वास करती हूँ। चाहे स्तिथि कितनी भी ख़राब क्यों न हो मैं लोकतंत्र में विश्वास करती हूँ और करती रहूंगी। और आप ...?


5/3/2012


आज सुकमा के कलेक्टर श्री अलेक्स पोल मेनन  रिहा  हो गए । खबरों के अनुसार जंगल में नक्सलियों ने जनअदालत में फैसला लिया के मेनन को रिहा कर दिया जाये। मन में यह सवाल आना स्वाभाविक  है की ये जन अदालत भी तो लोकतंत्र ही है । परन्तु यह सच नहीं है, कहने को तो ये जन अदालत है परन्तु निर्णय आदिवासियों के आका ही लेते हैं जिसपर सभी डरे सहमे आदिवासियों की मुहर मात्र होती है। यही है लोकतंत्र का सत्य। जगह कोई भी हो , संसद या जनअदालत। भोले भाले आदिवासियों को क्या पता होगा की वो क्या पा सकते है और क्या खो रहे हैं। वो तो वाही कहेंगे जो उन्हें सिखाया जायेगा। 

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