नूर नीरव - इन्द्रियातीत अस्तित्व


मेरी पहली सब्सक्राईबर नूर लाहोर थीं ... उनके बाद परसों तक कोई और मुस्लिम सब्स्क्राइबर नहीं था. कल से अचानक ही मुस्लिम सब्स्क्राइबर की संख्या बढ़ गई है. क्या वो मुझे मुस्लिम समझ रहे हैं या माइल्ड हिन्दू ? 

 पता नहीं , खैर.... मैं संज्ञा अग्रवाल हूँ . मुझे मुस्लिम नाम बहुत अच्छे लगते हैं परन्तु चाह कर भी मैं अपना नाम मुस्लिम नहीं रख पा रही थी क्योंकि ऐसी हिमाक़त घर में पहले किसी ने नहीं की थी कि माता-पिता का दिया नाम ही बदल दें. 

 मैंने वेद, पुराण, रामायण , गीता आदि का गहन अध्ययन नहीं किया है. जो कि हिन्दू होने के नाते मुझे करना चाहिए था. तो फिर मैं हिन्दू क्यों हूँ ? क्योंकि मेरे माता-पिता , दादा-दादी आदि हिन्दू हैं. उन्होंने भी  वेद - पुराण नहीं पढ़े हैं . फिर वो हिन्दू क्यों हैं ? मुझे बचपन से ही गौतम बुद्ध अच्छे लगते हैं. मैं बौद्ध होना चाहती थी पर ऐसा करने के पहले ही मुझे हिन्दू धर्म अच्छा लगने लगा और मैं धर्म से हिन्दू ही रह गई. या कहें कि अब ख़ुशी-ख़ुशी हिन्दू हूँ नाकि आरोपित तौर पर . 

परन्तु नाम 'नूर' रख लिया तो क्या हो गया  ? 'नूर' का मतलब होता है 'प्रकाश' , मेरे लिए नूर का मतलब है ईश्वर का प्रकाश. कई और भी विकल्प थे जैसे- फिजा, गुल, नूरी, परवीन, शमा, ग़ज़ल ... कितने अच्छे शब्द हैं ना .... परन्तु नूर जितना नूर किसी और शब्द में ना था. इसलिए मैंने नूर ही चुना. 

फेसबुक ने मुझसे सरनेम पूछा तो मैंने 'नीरव' लिख दिया. एकदम शांत ...गहरा.... शांत ... ऐसा ही लगा था जब पहली बार सद्गुरु से मिली थी. सो , नीरव मेरा चित्त हुआ. 

नाम सिर्फ टैग है... जिससे हमें पहचाना जाता है . धर्म वो है जिसकी अपनी मान्यता होती है, किताबें होती हैं , नियम होते हैं आदि. पहले मैं वो हूँ जो मैं हूँ ..  " नीरव " ... फिर हिन्दू हूँ , फिर भारतीय हूँ , फिर अग्रवाल हूँ ,फिर संज्ञा हूँ और अब " नूर " हूँ.

"नूर"  सिर्फ टैग है . मेरे पसंद का टैग. इसमें कौन सी बड़ी बात है कि आप अपनी पसंद का नाम रख लेते हैं प्रचलित नाम छोड़कर ... बिलकुल साधारण बात है. परन्तु मैं ना समझती इतनी से बात जो सद्गुरु ने मुझे शरीर और मन से अन्य  "नीरव" से ना मिलवाया होता. कहाँ है ये नीरव ... कितना बड़ा है , कैसा दिखता है.... नहीं पता ... पर है जरूर !  जो आप भी मिलना चाहते हों अपने नीरव से तो सद्गुरु की शरण में जाएँ... मन , बुद्धि , अहंकार में निहित या परे .. पता नहीं ...परन्तु आपको अपना अनंत प्राण 'नीरव' मिलेगा ज़रूर, ये वादा है. 

प्रणाम सद्गुरु !  


Comments

  1. कहाँ है ये नीरव ... कितना बड़ा है , कैसा दिखता है.... नहीं पता ... पर है जरूर ! जो आप भी मिलना चाहते हों अपने नीरव से तो सद्गुरु की शरण में जाएँ... मन , बुद्धि , अहंकार में निहित या परे .. पता नहीं ...परन्तु आपको अपना अनंत प्राण 'नीरव' मिलेगा ज़रूर, ये वादा है।


    सच कहूं तो इसके लिए धैर्य की भी जरूरत होगी, जिसका लोगों मे अभाव है।
    बहुत सुंदर,

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  2. mahendraji .. sadguru ne dhairya ki pariksha nahi li thi. yah anubhooti ek niji parivarik mulaqat ke baad hui thi aur tab ham aadhyatmik roop se ag aan the.. poori tarah shoonya . ye sadguru ki kripa hai . jo kisi ko bhi mil sakti hai.. iske liye kisi bhi yogyta ki aavashyakta nahi hai.

    :)

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