कैसे कहें मुबारक आजादी भाई ..

हर ख़ुशी ग़मगीन है इस पार उस पार 
जो शिरी फरहाद की और राधा किशन की हो गई .. 

जो पत्थर पुजते थे बन के देवता 
उनकी मनहूस किस्मत हो गई ...

बकरीद इंसानों से मनाई 
और होली लहू से सन गई .... 

'नूर ' है गायब दोनों तरफ 
कैसे कहें मुबारक आजादी भाई ..

एक थी पूजा और नमाज की चादर
एक लकीर की गुलाम बन गई ...

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