रिश्ता .. अकेला जो नहीं होता..
छोटा सा मोजा
या मफ़लर
या दोनों ..
पैरों की पायल
या हाथों की चूड़ियाँ
या दोनों ..
आँखों में काजल
माथे पर बिंदी
हाँ .. दोनों ...
मुँह पर हाथ रखोगी
या यूँ ही बिन दांत हंस दोगी मुझपर
हम्म ... ?
दोनों .. ?
हम्म ....
जो कहोगी वो करुँगी
जो न कर पाई तो ...
थोड़ा सा रो लूँगी
मना लेना ना तुम
फिर से मुझे
सर पर हाथ रख हँसकर
कह दो पापा से
निकालो मुझे इस कूड़े से
मेरी माँ रोती होगी
उसकी रूँधी सिसकी और मेरी साँस का सुर
अपने एक बूँद आँसू में मत बहने दो पापा
पकड़ो मेरा हाथ और गले लगा लो न पापा ..
मैं माँ की गीत
और आपकी जीत
मुझे भी सब - सा जीने दो न पापा
[ कलम कब माँ से बेटी में और बेटी से पापा में चली गई पता नहीं चला .... रिश्ता .. अकेला जो नहीं होता.. ]
बहुत सुन्दर कविता...
ReplyDeleteVery Heart Touching Poetry
ReplyDeleteमैं माँ की गीत
Deleteऔर आपकी जीत
मुझे भी सब - सा जीने दो न पापा .......बहुत सुन्दर.