उस रेगिस्तानी टीले पर ..


दूर रेगिस्तान की एक मीनार के अहाते में 
सनसनाती हवा के संगीत में 
लहराती जुल्फों के नृत्य में 
ताल मिलाती आँखों की पुतलियाँ 

मुर्दे भी चैन से लेटे थे जहाँ 
अपने अधूरे ख्वाबों के कश लेते 
कभी - कभी मुझे देखते
बस एकाध बार अपने ख्वाब के विषय बदलने

एक नकाबपोश है दूर ऊंट में बैठा 
रेत के बवंडर से आता 
आहिस्ता आहिस्ता .. फिर ..
गुम हो जाता उसी बवंडर में 

मुर्दे भी मुंह फेर लेते 
सो जाते उस करवट 
इंतज़ार में 
किसी दूसरे नकाबपोश के 

एक बार बवंडर देखती 
तो दूसरी बार मुर्दे 
दोनों ही नही .. होकर भी 
दोनों ही हैं ..न होकर भी 

बैठकर देखती फिर से 
गर्म हवा के झोकों से रेत उड़ते 
इत्मिनान का कश खींचते 
उस रेगिस्तानी टीले पर 

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