बेरोजगार हूँ मैं

बेरोजगार हूँ मैं

यही है मेरा नाम ' बेरोजगार '
सुबह उठता हूँ
आईने देखे बिना ही मुंह धो लेता हूँ
अब कौन दाढ़ी बनाने और बाल कटवाने जाए
वो नाई अब ……
बेकार बाल काटता है वो
और रितिक भी तो पीछे छोटी बनाता है
डाँटने दो माँ को
वो नही समझती ये सब फैशन
नाराज हो जाती है मेरी खींसे निपोरती हँसी पर
कहती है ' कब समझदार होगा रे तू '
मैं फिर बालों को हाथ से फेर खिड़की को देखते
माँ के पल्लू से छूकर निकल जाता हूँ

बाहर जाता हूँ कुछ करने
कुछ बनने अपने सपनों को जीने
तभी कल्लू मिलता है
सोने का एक कृदन्त दिखाता हुआ
अपना हाल झाड़ता हुआ
मुझपर तरस खाता बोलता है
'आजा मेरी लाईन में
यहाँ तेरे जैसे नाम वालों की खूब वेकेंसी निकलती है
बस एक बार सही जगह पर बम फोड़ना है रे
फिर कान बंद और आँख बंद
बस मुस्कुरा के नोट गिन
बाकी का काम मानवाधिकार वाले सम्भाल लेंगे '
मन करता है वहीं पूरे स्वर्णजड़ित दन्त पंक्ति का इंतेजाम कर दूँ
पर सामने नेहा बैठी है ना उस कल्लू को निहारती
चुप हो जाता हूँ मैं
यारों ! बेरोजगार हूँ मैं !

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