रघु अ बाउण्डेड सोल

जीवन के उसपार क्या है? क्या आत्मा अपना प्रतिशोध ले सकती है? क्या आत्माओं से संपर्क किया जा सकता है? कर्म बंधन से मुक्ति का मार्ग क्या है? क्या आत्माएं भी बंधक होती है? इन सारे जटिल प्रश्नों का हल तलाशने का प्रयास करती है ,संज्ञा अग्रवाल द्वारा लिखित और नोशन प्रेस द्वारा प्रकाशित उनका पहला उपन्यास। 'रघु ,अ बाउंडेड सोल' लेखिका स्वयं लाइफ रिग्रेशन थेरेपिस्ट और एनर्जी हीलर के रूप में कार्य करती है और इस कारण इन उपन्यास की विषयवस्तु ऑथेंटिक लगती है। उपन्यास में बिलासपुर शहर का जिक्र बार -बार हुआ है जिसके कारण छत्तीसगढ़ के पाठक इस उपन्यास से खुद को जोड़ पाते है। उपन्यास में रघु ,जो कि इस उपन्यास का मुख्य किरदार है और उसके परिजनों के मध्य छत्तीसगढ़ी में संवाद दिखाया गया है जो कि कुछ अटपटा लगने के बावजूद स्वाभाविकता के लिए आवश्यक था। उपन्यास की कहानी चंद चरित्रों ,मैम, रघु ,नितिन देसाई ,तृप्ति आदि के अंदर ही अन्तर्गुम्फित है ।यहाँ चरित्रों की रेलमपेल नहीं है। ट्रिशा और संदर्भ चूड़ीवाला प्रकरण अलग ही ट्रैक पर चलता है और मुख्यकथा से गुम्फित नही हो पाया है। पारलौकिक विषयों, दर्शन एवं अध्यात्म में रुचि रखने पाठकों को यह उपन्यास अच्छा लगेगा । महेश पाण्डे छत्तीसगढ

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