गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई !





ऐसा क्यों होता है कि हम अपने देवी-देवता की स्थापना करते हैं , उनकी पूजा करते हैं और फिर ......... उनका  विसर्जन कर देते हैं ?
यह प्रश्न कल ही मेरे मन में आया और आज इसका उत्तर या कहें इस सन्दर्भ में एक दृष्टिकोण मुझे अपने मित्र से मिला।
मेरे मित्र का कहना है कि जैसे हम निराकार से साकार रूप लेते हैं , अपने जीवन की व्यवस्था करते हैं और अंत में संसार सागर में पुनः निराकार रूप में समा जाते हैं वैसे ही हमारे प्यारे गजाननजी भी मिटटी से गढ़ साकार रूप लेते हैं और पूरे पूजन-भोग इत्यादि के उपरान्त हमसे विदा ले लेते हैं यह बताते हुए कि हम अनंत से निर्मित हैं और अनंत में ही निराकार रूप में  समाहित हो जायेंगे. हम फिर आयेंगे साकार रूप में और फिर निराकार में मिल जायेंगे। अतः हमें अपने निराकार रूप को पहचानना चाहिये और साकार रूप को 'रिद्धि-सिद्धि' से पूर्ण कर ज्ञानपूर्वक जीवन जीना चाहिए। 

हे मंगलमूर्ति गणाधिपति देव !
आप ज्ञान के देवता हैं और धन के भी। अर्थात आपके साकार रूप द्वारा दिए गए ज्ञान को अपनाकर हमें माँ सरस्वती और माँ लक्ष्मी दोनों का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। हे देव ! आपको अनेक रूपों में जाना है। आज आप मेरे लिए नश्वरता का ज्ञान लेकर आये। धन्यवाद !

आप सभी को श्री गणेश चतुर्थी की मंगल कामनाएं ! श्री गणेश की कृपा सब पर सदैव बनी रहे।

ॐ गं गणपतये नमः


वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

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