अहोई अष्टमी- लड़कों की ही आयु के लिए क्यों , लड़कियों की लम्बी आयु के लिए क्यों नही ?

नारी प्रकृति प्रदत्त कोमलमना होती है. एक सुन्दर सम्मिश्रण कोमलता और शक्ति का. जहाँ कोमल मन अपनों की सुरक्षा चाहता है वहीँ अदम्य साहस संकल्प लेकर कष्ट सहते हुए भी अपनों की रक्षा करता है. दीपावली के एक सप्ताह पूर्व स्त्री के इसी पूर्ण रूप का एक और पर्व आता है जिसे 'अहोई अष्टमी' कहते हैं. यह अहोई माँ को समर्पित एक व्रत है जिसे माताएं अपनी संतान की सुरक्षा की कामना हेतु करती हैं. ऐसा ही एक और व्रत 'सं
तान सातें' भी भारत में किया जाता है.

अहोई अष्टमी या होई आठे का व्रत विशेषकर पुत्रों की लम्बी आयु के लिए किया जाता है. प्रश्न उठता है की लड़कों की ही आयु के लिए क्यों , लड़कियों की लम्बी आयु के लिए क्यों नही ?

यह बात वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है की लड़कियां लड़कों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती हैं शारीरिक और मानसिक दोनों ही रूपों में. प्रकृति ने गर्भधारण करने की शक्ति नारी को ही दी है क्योंकि नारी दुःख, भूख और गर्भस्थ शिशु की संभाल कर सकने में पुरुषों से अपेक्षाकृत ज्यादा सक्षम है. जन्म के पश्चात देखा गया है की लड़कियां जीवन बचा जाती हैं परन्तु लड़के बिमारी या समयपूर्व जन्म में जीवित नही बच पाते हैं. सामाजिक रचना ऐसी है की स्त्री घर की देखभाल बच्चों की देखभाल करती है और पुरुष सदस्य धनार्जन करते हैं. यदि घर में पुरुष न हों तो स्त्रियों को ही कष्टों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में आवश्यक है की पुरुषों की विशेष देखभाल की जाये. और यह कौन करेगा.. निश्चित रूप से , जो स्वस्थ और कोमल मन होगा वह ही करेगा.

स्त्रियों का व्रत करना और व्रत पुरुषों ( भाई, पुत्र एवं पति ) के लिए करना स्त्री की शक्ति का प्रमाण है. व्रत की देवी भी माँ ही हैं. 'शक्ति' संसार की जननी हैं, "माँ" हैं. वे शक्ति होकर भी कोमलमना हैं, 'अन्नपूर्णा' हैं. यह कोई नियम नहीं है की स्त्रियाँ ही व्रत करें पुरुष नहीं और स्त्रियाँ अपने पुत्रों के लिए ही व्रत करें पुत्रियों के लिए नही. समस्त सृष्टि एक है. यहाँ कोई भेद नही. व्रत मात्र अपने रिश्तेदारों के लिए ही करें ऐसा भी आवश्यक नही है. सबके लिए व्रत करें, सबका उद्धार हो. अहोई माँ सबका भला करें और अपनी शीतलता से सभी संतानों ( समस्त चराचर जगत ) को सिक्त करें.






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