झूला

हवा की महक
सूखी पत्तियों की ताल
मिटटी का घर्षण
गगन का आश्वासन
मिटटी से जुड़ा झूला

बच्ची का खेल करता झूले को ऊँचा ..और ऊँचा
खिलखिलाहट का स्वर ऊँचा ... और ऊँचा
पैरों की अठखेली को त्वरित ... और .. और
अनथक श्रम ... आगे और पीछे जाने का
झूले को सताने का ... ले जाने का .. ऊँचा .. और ऊँचा

निःस्वार्थ झूला भी बना है नादान
अपनी रस्सी को तान
करने देता है मनमानी
झूलाने को ऊँचा ... और ऊँचा
आगे - पीछे ... आगे - पीछे होकर
लेता है अपने झूला होने का मजा
बचपन की खुशियाँ बढ़ाकर ऊँचा .. और ऊँचा ...







Comments

  1. तो गोया आज आपका ये ठिकाना भी हमें दिख गया , चलिए अच्छा है अब आप के और भी अंदाज़ देखा करेंगे । शुभकामनाएं आपको

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    1. स्वागत है अजय जी .

      आपका बहुत धन्यवाद की आपने ब्लॉग पढने का समय निकाला.

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  2. अच्छी रचना, बहुत सुंदर
    सार्थक चिंतन

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  3. भाव प्रदान रचना...हुम्मम...पढ़ते-पढ़ते गुजरे हुए बचपन को दोहरा गयी...:)

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