एक भारत .. आखिर कब
L.L.B. में एडमिशन लिया आज। वजह्ह... वजह्ह... वही.. जो मेरी सहेलियां मुझे स्कूल में कहतीं थीं .. संज्ञा तू बहस अच्छी करती है वकील बनना बड़ी होकर। कल ये बात सीनियर एडवोकेट कनक तिवारी अंकल ने भी कही और उनका ऑफिस ज्वॉइन करने को भी कहा तो मना नहीं कर पाई। 😇🌸❤🙏
'बड़ी होकर' .. ये शब्द मुझे सम्मोहित कर देते.. पर कक्षा दूसरी से मुझे पक्का पता था कि मुझे तो डॉक्टर बनना था। बॉटनी की उलझाऊ फैमिली, फिजिक्स के दो रेलों के बीच पीसते न्यूमेरिकल, इनऑर्गनिक चैमिस्ट्री की डरावनी मिस्ट्री से अनजान पक्की मस्तीखोर मैं .. सबसे ज्यादा साइंस ही पढ़ती थी मन लगाकर 🌸😍🌸
मैं मन में खुश होती सोचकर कि आज कक्षा आठवीं में लोगों की नज़र में मैं वकील बनने की योग्यता तो रखती हूँ कम से कम 🤗🤗🤗 मेरे पापा वकील थे और उनका अनुभव अच्छा नहीं था तो उनकी बातों का मेरे ऊपर यह इंप्रेशन था के वकील गलत आदमी को जितवा देता है और यह काम अच्छा नहीं है तो इस लाइन में नहीं जाना है भविष्य से अनजान मैं यह बात बचपन से जानती थी।
साइंस ही मिले ग्यारहवीं में इसलिये अपने स्वभाव से विपरीत मैंने खूब पढ़ाई की। नतीजतन 84% प्राप्तांक मिले जिससे बायो लेने का रास्ता खुल गया। दो एक नंबर इशारेबाजी😉 से कमाए हुए काट सकते हैं आप मेरे।
अब आगे 11वीं कक्षा में पढ़ने लगे नए नए विषय इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन उत्प्लवन ब्रायोफाइटा टेरिडोफाइटा आंत आमाशय प्लीहा मतलब ऐसे ऐसे नाम जैसे कोई बम गिरा रहा हो आपके सिर पर 😣😣😣
उफ्फ ... पर क्या करते सारे बमों को सिर पर लेकर कभी इस कोचिंग से उस कोचिंग.. कभी उस ट्यूशन सेइस टयूशन सुबह 4:30 बजे से जो घर से निकलते रात को 8:30 बजे तक यही चलता था। घर आकर भी राहत नहीं ...कल की तैयारी ...आज का रीविजन ....रात को 2:00 कब जाता पता नहीं चलता था। कैसे 2 साल निकले पता नहीं चला। PMT दी तो ठीक-ठाक मार्क्स आए परंतु सिलेक्शन नहीं हुआ।
अपने सिलेक्शन ना होने का दुख इतना नहीं था जितना इस बात से आतंकित ये मन था कि हमारी थ्रू आउट टॉपर बहन [डॉक्टर संगीता अग्रवाल] 80 पर्सेंट मार्क्स लाकर भी तीसरी बार पीएमटी में फेल हो गई थी। PMT के चक्कर में हम ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन बनाने सारा दिन युगबोध लिए बैठे रहते थे। इस चक्कर में बारहवीं में प्रश्नों के उत्तर अच्छे से एक्सप्लेन करके नहीं लिख पाए और रिजल्ट हमारी गरिमा के अनुकूल ना आया। पास तो खैर हो गए थे.. 😑
खैर, बहुत मनाने पटाने पर और अपने ट्यूशन के त्रिपाठी सर के दबाव में आकर मेरी बहन ने चौथी बार PMT दी और 84 पर्सेंट लाकर भी MBBS में एडमिशन नहीं ले पाई।कारण- क्योंकि दीदी ने डर के मारे प्रायोरिटी बीडीएस भर दी थी। उसने मुझे एक सलाह दी कि मैं तो अपने 3 साल इस एग्जाम के चक्कर में बर्बाद कर चुकी हूं तू मत कर। तू कितने भी अच्छे परसेंट ले आए... राज अब आरक्षित वर्ग का ही है भारत में ।
हम हट गये अपने बचपन के सपने और मेहनत से दूर। माइक्रोबायोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने MPPSC की तैयारी की । तैयारी बहुत मन लगाकर की । रात को 8:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक पढ़ना... फिर 8:00 बजे कोचिंग जाना 10:00 बजे आना ...फिर 12 से 2 पढ़ना फिर 4 से 6 पढ़ना और पढ़ना और पढ़ना और पढ़ना... । नतीजतन, पहले ही प्रयास में प्रीलिम्स निकल गई परंतु गलत तकनीक से पढ़ाई करने की वजह से और 'एक अन्य वजह' से फिर से हम प्रतियोगिता से बाहर हो गए।
फिर क्या हुआ वह एक अलग मैटर है आज जब सालों बाद LLB में एडमिशन लेने गई तो एडमिशन फॉर्म भरते समय एकदम से ठिठक गई और गुस्से से आंखें लाल हो गईं।
फॉर्म में राष्ट्रीयता का कॉलम अलग था और जाति का अलग ...
इतनी पढ़ाई कर चुकी हूं आज तक कि बता नहीं सकती। मेरी फील्ड से जुड़े लोग जानते हैं ... यहां पसंद का विषय कुछ नहीं होता .. । आप रॉकेट साइंस भी पढ़ते हैं और भारतीय और पाश्चात्य दर्शन भी पढ़ते हैं। अमेरिका की विदेश नीति भी पढ़ते हैं और खेलों की समस्याएं भी। आप अर्जेंटीना की जनजातियां भी पढ़ते हैं और दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ भी। आप देश की समस्याओं पर बड़े-बड़े निबंध भी लिखते हैं और संपादकीय पर प्रकांड पंडित की तरह अपनी राय भी दे सकते हैं। इसके लिए आपको ऑफिसर बनना जरूरी नहीं है। अगर आपने ढंग से पढ़ाई की है 2 साल या 3 साल तो इतना तो आप जानते ही हैं यह तो तय है।
पर आज फॉर्म देखने बाद लगा कि हम पिछले 5000 + 70 साल से अंग्रेजी मानसिकता के अधीन हैं। कैसे कह दें जय हिंद ... जब हम आज भी केवल भारतीय ना होकर अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक हैं, अगड़े और पिछड़े हैं, हिंदू और मुसलमान है , सिख है इसाई है , मूल निवासी हैं आर्य है.... और ना जाने क्या-क्या ?? ना जाने भारत कब जागेगा ... कब पढ़ा लिखा होगा ? हमें एकता, योग्यता और समरसता की ओर बढ़ना है न कि बँटवारे की ओर।
भारत !
अब नहीं तो कब ?
'बड़ी होकर' .. ये शब्द मुझे सम्मोहित कर देते.. पर कक्षा दूसरी से मुझे पक्का पता था कि मुझे तो डॉक्टर बनना था। बॉटनी की उलझाऊ फैमिली, फिजिक्स के दो रेलों के बीच पीसते न्यूमेरिकल, इनऑर्गनिक चैमिस्ट्री की डरावनी मिस्ट्री से अनजान पक्की मस्तीखोर मैं .. सबसे ज्यादा साइंस ही पढ़ती थी मन लगाकर 🌸😍🌸
मैं मन में खुश होती सोचकर कि आज कक्षा आठवीं में लोगों की नज़र में मैं वकील बनने की योग्यता तो रखती हूँ कम से कम 🤗🤗🤗 मेरे पापा वकील थे और उनका अनुभव अच्छा नहीं था तो उनकी बातों का मेरे ऊपर यह इंप्रेशन था के वकील गलत आदमी को जितवा देता है और यह काम अच्छा नहीं है तो इस लाइन में नहीं जाना है भविष्य से अनजान मैं यह बात बचपन से जानती थी।
साइंस ही मिले ग्यारहवीं में इसलिये अपने स्वभाव से विपरीत मैंने खूब पढ़ाई की। नतीजतन 84% प्राप्तांक मिले जिससे बायो लेने का रास्ता खुल गया। दो एक नंबर इशारेबाजी😉 से कमाए हुए काट सकते हैं आप मेरे।
अब आगे 11वीं कक्षा में पढ़ने लगे नए नए विषय इलेक्ट्रॉन प्रोटॉन उत्प्लवन ब्रायोफाइटा टेरिडोफाइटा आंत आमाशय प्लीहा मतलब ऐसे ऐसे नाम जैसे कोई बम गिरा रहा हो आपके सिर पर 😣😣😣
उफ्फ ... पर क्या करते सारे बमों को सिर पर लेकर कभी इस कोचिंग से उस कोचिंग.. कभी उस ट्यूशन सेइस टयूशन सुबह 4:30 बजे से जो घर से निकलते रात को 8:30 बजे तक यही चलता था। घर आकर भी राहत नहीं ...कल की तैयारी ...आज का रीविजन ....रात को 2:00 कब जाता पता नहीं चलता था। कैसे 2 साल निकले पता नहीं चला। PMT दी तो ठीक-ठाक मार्क्स आए परंतु सिलेक्शन नहीं हुआ।
अपने सिलेक्शन ना होने का दुख इतना नहीं था जितना इस बात से आतंकित ये मन था कि हमारी थ्रू आउट टॉपर बहन [डॉक्टर संगीता अग्रवाल] 80 पर्सेंट मार्क्स लाकर भी तीसरी बार पीएमटी में फेल हो गई थी। PMT के चक्कर में हम ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन बनाने सारा दिन युगबोध लिए बैठे रहते थे। इस चक्कर में बारहवीं में प्रश्नों के उत्तर अच्छे से एक्सप्लेन करके नहीं लिख पाए और रिजल्ट हमारी गरिमा के अनुकूल ना आया। पास तो खैर हो गए थे.. 😑
खैर, बहुत मनाने पटाने पर और अपने ट्यूशन के त्रिपाठी सर के दबाव में आकर मेरी बहन ने चौथी बार PMT दी और 84 पर्सेंट लाकर भी MBBS में एडमिशन नहीं ले पाई।कारण- क्योंकि दीदी ने डर के मारे प्रायोरिटी बीडीएस भर दी थी। उसने मुझे एक सलाह दी कि मैं तो अपने 3 साल इस एग्जाम के चक्कर में बर्बाद कर चुकी हूं तू मत कर। तू कितने भी अच्छे परसेंट ले आए... राज अब आरक्षित वर्ग का ही है भारत में ।
हम हट गये अपने बचपन के सपने और मेहनत से दूर। माइक्रोबायोलॉजी से ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने MPPSC की तैयारी की । तैयारी बहुत मन लगाकर की । रात को 8:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक पढ़ना... फिर 8:00 बजे कोचिंग जाना 10:00 बजे आना ...फिर 12 से 2 पढ़ना फिर 4 से 6 पढ़ना और पढ़ना और पढ़ना और पढ़ना... । नतीजतन, पहले ही प्रयास में प्रीलिम्स निकल गई परंतु गलत तकनीक से पढ़ाई करने की वजह से और 'एक अन्य वजह' से फिर से हम प्रतियोगिता से बाहर हो गए।
फिर क्या हुआ वह एक अलग मैटर है आज जब सालों बाद LLB में एडमिशन लेने गई तो एडमिशन फॉर्म भरते समय एकदम से ठिठक गई और गुस्से से आंखें लाल हो गईं।
फॉर्म में राष्ट्रीयता का कॉलम अलग था और जाति का अलग ...
इतनी पढ़ाई कर चुकी हूं आज तक कि बता नहीं सकती। मेरी फील्ड से जुड़े लोग जानते हैं ... यहां पसंद का विषय कुछ नहीं होता .. । आप रॉकेट साइंस भी पढ़ते हैं और भारतीय और पाश्चात्य दर्शन भी पढ़ते हैं। अमेरिका की विदेश नीति भी पढ़ते हैं और खेलों की समस्याएं भी। आप अर्जेंटीना की जनजातियां भी पढ़ते हैं और दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ भी। आप देश की समस्याओं पर बड़े-बड़े निबंध भी लिखते हैं और संपादकीय पर प्रकांड पंडित की तरह अपनी राय भी दे सकते हैं। इसके लिए आपको ऑफिसर बनना जरूरी नहीं है। अगर आपने ढंग से पढ़ाई की है 2 साल या 3 साल तो इतना तो आप जानते ही हैं यह तो तय है।
पर आज फॉर्म देखने बाद लगा कि हम पिछले 5000 + 70 साल से अंग्रेजी मानसिकता के अधीन हैं। कैसे कह दें जय हिंद ... जब हम आज भी केवल भारतीय ना होकर अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक हैं, अगड़े और पिछड़े हैं, हिंदू और मुसलमान है , सिख है इसाई है , मूल निवासी हैं आर्य है.... और ना जाने क्या-क्या ?? ना जाने भारत कब जागेगा ... कब पढ़ा लिखा होगा ? हमें एकता, योग्यता और समरसता की ओर बढ़ना है न कि बँटवारे की ओर।
भारत !
अब नहीं तो कब ?
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