Main Chup Rawangajii

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी का जीवन परिचय पढ़कर मैं उनसे और भी ज्यादा प्रभावित हो गई हूँ. बेहद होनहार विद्यार्थी थे मनमोहन सिंह. वो अपने अकादमिक करिअर में हमेशा अव्वल रहे और अपनी सभी प्रमुख उपाधियाँ उन्होंने विश्व के जाने - माने कॉलेजों से ली हैं जिनमे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है. उन्होंने अपने जीवन में जो भी काम किया उसमे बेहद सफलता प्राप्त की. वर्ष १९८२-१९८५ तक वे रिज़र्व बैंक के गवर्नर रहे, वे योजना आयोग के सलाहकार भी रहे. राज्य सभा सांसद रहे श्री सिंह वर्ष २००८-०९ में भारत के वित्तमंत्री बने तथा भारत को लाइसेंस राज से मुक्त कर देश की आर्थिक तरक्की सुनिश्चित की. बस यहीं से वो हर भारतीय के प्रिय नेता बन गए. 
जब तेरहवीं लोक सभा के लिए चुनाव होने थे तो पूए भारत में डॉक्टर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद पर आसीन देखने की चाहत लोगों में थी, सबको लगता था की इनके जैसा होशियार और ईमानदार व्यक्ति अगर देश का नेता होगा तो देश हिरण की तरह कुलांचे मारता हुआ आगे बढेगा और एक ऐसी सरकार का निर्माण होगा जोकि देश की एकता को मजबूती और स्थिरता देगी साथ ही, विकास ही सरकार का मुख्य मुद्दा होगा. थोड़े से ही समय में डॉक्टर मनमोहन सिंह ने अपनी शख्सियत का ऐसा जादू चलाया की अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद अल्बरदेई से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक सब उन्हें दिली इज्जत देने लगे और वो फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार विश्व के १८ वें सबसे ताकतवर व्यक्ति बन गए. 
ऐसे में देश की विपक्षी पार्टियाँ कोई मौका नहीं ढूंढ़ पाईं जिससे श्री सिंह को दुबारा प्रधानमंत्री बनने  से रोक सकें और वो पुनः १४ वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री बन गए. पर इसके बाद सब गड़बड़ होने लगी. प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार लगातार घोटालों में फंसती चली गई और हमारे ७८ वर्षीय प्रधानमंत्री सबकुछ 'बेबस' होकर देखते रह गए. बड़ा आश्चर्य हुआ कि जनता का चहेता नेता बेबस कैसे हो सकता है? उन्हें किसने बेबस कर दिया है? घटक दलों कि मांगों और तेवरों ने? तो क्या दल का नेता अपने घटक दलों कि बेबुनियाद मांगे अस्वीकार नहीं कर सकता है? बी जे पी ने राष्ट्र को बताया कि मनमोहन सिंह जी तो कठपुतली मात्र है, रिमोट कंट्रोल तो सोनियाजी के पास है तो यकीन नहीं हुआ मुझे, ऐसा कैसे हो सकता है कि इतना होशियार व्यक्ति जिसपर जनता को भरोसा  है , कठपुतली बन जाये? मुझे लगा कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है.
परन्तु, मैं शायद गलत थी, परसों रात हुई घटना जिसने पूरे देश को हिला दिया उसपर श्री मनमोहन सिंह का कोई बयान नहीं आया. क्यों? एक देश का प्रधानमंत्री जो कि बेहद पढ़ा-लिखा है न ट्विटर पर उपलब्ध था नाही ऐसे किसी माध्यम से जनता से संवाद स्थापित कर रहा था. जबकि विश्व के सबसे बड़े देश के राष्ट्रपति जोकि शायद हमारे प्रधानमन्त्री से ज्यादा ही व्यस्त होते होंगे ट्विटर जैसे माध्यमों का प्रयोग दैनिक रूप से करते हैं. कल दिनभर मीडिया परसों रात को हुई घटना दिखाती रही जिसे देखकर सभी आहात हो गए परन्तु कांग्रेस के नेता बिना किसी झिझक के पुलिस कि बर्बरता को सही ठहराते रहे जैसी कि हमें तो सही-गलत का निर्णय करना आता ही नहीं है. कल तो ऐसा लगा जैसे कि हम भारत के नहीं लिबिया के नागरिक हैं और गद्दाफी का आतंक झेल रहे हैं. 
सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी कहाँ हैं सब? इन्हें यू पी में जो हो रहा है वो गलत लगता है और जो परसों हुआ क्या वो सही था? खैर, इन नाम के गांधीयों पर मैं नहीं जाना चाहती. मन में ये विचार उठ रहा है कि क्यों इतने पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री, जनता के प्रिय प्रधानमंत्री एक आठवीं पास सन्यासी या कांग्रेस के शब्दों में कहें तो मात्र एक योग टीचर से डर गए? इन्होने दिग्विजय सिंह कि जुबान पर लगाम क्यों ना कसी? फिर वही, 'बेबस' रहे होंगे. पर हजारों लोगों को सोते वक़्त पिटवाना इन्हें सही लगा और ये ऐसा कर भी पाए , उस वक़्त ये क्यों न 'बेबस' हो गए? आश्चर्य होता है ना ?!! कोई जवाब जैसा जवाब दीजिये प्रधानमंत्रीजी , हम आपको मजबूर नहीं बल्कि ताकतवर नेता के रूप में देखना चाहते हैं और आप अभी भी 'बेबस' हैं. पूर्व आई पी एस अफसर डॉक्टर किरण बेदी ने ठीक ही कहा है " ये लीडरशिप नहीं है, अगर आप अपनी जिम्मेदारिया नहीं उठा पा रहे हैं तो जनता को धोखा मत दीजिये". कांग्रेस चाटुकारों से भरी हुई अवसरवादीयों की पार्टी है जो ये भूल गई है की बी जे पी और आर एस एस के लोग भी भारतीय ही हैं जैसे कि कांग्रेसी. भगवा रंग किसी कि बपौती नहीं है, ये देश का स्वाभिमान है तभी केसरी रंग हमारे देश के झंडे में सबसे ऊपर है. इसको सभी को सम्मान देना चाहिए चाहे वो जिस भी 'मत' का हो. 

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