अन्ना की गुप्त ऊष्मा का सुप्रभाव



इस बार के उपवास में वो बात नहीं दिख रही जो पहले थी. वो हल्ला, वो जोश, वो उत्साह, लोगों की भीड़, 'मैं भी अन्ना-तू भी अन्ना ' का नारा जैसे सब शांत हो गया है. पिछले पांच महीनों से चल रही रस्साकशी से लोग तंग आ गए हैं. कांग्रेस ने जबानी जोश दिखाकर सबको निराश कर दिया है. नेता कैसे होते हैं सबको पता है पर खुलेआम सत्ता का प्रदर्शन कर कांग्रेस ने बता दिया है कि वो जनता से ऊपर है. वह भारतीय जनता पार्टी की बड़ी बहन है और वो जो चाहे करे, उसे कोई नहीं हटा सकता है. कैसा दम्भपूर्ण आचरण है ये?
जनता इन सबसे ऊब चुकी है  इसलिए अब अन्ना हजारे के आन्दोलन में वो बात नहीं दिख रही. प्यार और विश्वास से लबरेज इस आन्दोलन को अन्ना की टीम पर लगे आरोपों ने ठंडा कर दिया है. जनता समझ चुकी है कि प्यार से बोलने पर कुछ नहीं होगा, भाजपा से भी कोई ख़ास उम्मीद नहीं की जा सकती, तो क्या करें?आज अन्ना के मंच पर सभी पार्टियाँ आकर लोकपाल के मुद्दे पर अपनी राय प्रकट करेंगी जिससे यह समझने में आसानी होगी कि ये चाहते क्या है? ये केवल कांग्रेस के खिलाफ हैं या भारत की जनता भी इनके मानस में कोई अहमियत रखती है ? 
शांतिपूर्ण तरीके से प्रारंभ इस आन्दोलन को हलके से नहीं लिया जाना चाहिए.  जनता भले ही शांत दिख रही है परन्तु अन्दर ही अन्दर सुलग रही है, कोई कितना बर्दाश्त करे और क्यों करे? सरदार जी का साथ सबने दिया फेसबुक पर, घर बैठे, दिल से ..क्या सत्ता इसे समझ नहीं रही है? सब समझ रही है, वो दिन अब नहीं रहे.. अन्ना हजारे ने अन्दर से खेल खेल रहे राहुल गाँधी को खुली चुनौती दे दी है.... अबकी बार युद्ध ज्यादा धारदार होगा क्योंकि हम पहले ही देख चुके हैं कि अन्ना अनुभवी हैं और बड़ी चतुरता से एक-एक कदम रखते हैं. वे अच्छी तरह से जानते हैं कि 'सांच को आंच नहीं'. अब देखिये अन्ना की ये 'गुप्त ऊष्मा' कितनों को जलाती है और कैसे जनता के लिए जनलोकपाल पकाती है?  


अन्ना और उनकी टीम का धन्यवाद, आज उनकी वजह से पहली बार CPM , CPI, JDU को जनता को संबोधित करते सुना. हालाँकि ये बहन मायावती जितना मनोरंजक तो नहीं था परन्तु अच्छा लगा. और भी अच्छा होता अगर ऐसी चर्चा संसद में देखने को मिलती परन्तु विपक्ष को  संसद की गरिमा उसे ना चलने देने में ही समझ आती है. यहाँ खासतौर पर मैं  शरद यादव जी का उल्लेख करुँगी, उनका भाषण अच्छा लगा, वही बिहारी टच, सीधी बात नो बकवास. शरद यादवजी ने संसद में कहने के लिए कुछ बातें बचा लीं जो अच्छा लगा. काश, भाजपा और अन्य विपक्षी दल  संसद में वैसा ही जोश और प्रतिबद्धता दिखाएँ जैसी रामलीला मैदान में दिखा रहे थे. 


एक बात स्पष्ट है कि इस प्रकार की चर्चाएँ एक लोकतान्त्रिक देश के भले के लिए आवश्यक तो हैं परन्तु यह अनुचित होगा कि संसद की गरिमा को ध्यान में ना रखा जाये. कांग्रेस का इस सभा का बहिष्कार करना अनुचित नहीं कहा जा सकता है, संसद में चर्चा ना कर विपक्ष ने संसद का अपमान किया है, यह सभी बातें अन्ना हजारे के मंच के साथ-साथ संसद में सदन के सम्मुख भी कही जा सकती थीं. साथ ही, यह बात कांग्रेस को भी सोचनी होगी कि उन्हें इतना अभिमानी नहीं होना चाहिए कि बस वो आलाकमान की सुनें और जनता, सिविल सोसायटी, विपक्ष सबको दरकिनार कर दें. 


शरद यादवजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि सीबीआई तो भ्रष्टाचार की चाबी है, अगर वह कार्यकुशल और स्वतंत्र होती तो २७ नहीं २७०० भ्रष्ट तिहाड़ में सजा काट रहे होते. यह जानते हुए भी सीबीआई को लोकपाल के अन्दर नहीं लाना संदेह पैदा करता है. राजनीति तो यही कहती है कि ऐसी संस्था राजसत्ता अपने पास ही रखे अतः यह अवश्यम्भावी है कि भले ही यह जनहित में न हो परन्तु होगा यही कि सीबीआई केंद्र के अधीन ही कार्य करेगी. आज की चर्चा में एक बात और उभर कर आई कि देश जातिवादी राजनीति का शिकार है और हर बात पर जात-पात का हवाला देकर हम देश को पीछे धकेल देते हैं. हमें अपनी सोच को बदलना होगा ताकि देश त्वरित गति से आगे बढे न कि वोट बैंक की राजनीति में अपना बेडा गर्क कर ले . यह अच्छा हुआ कि लोकपाल के अंतर्गत प्रधानमन्त्री को और निचले वर्ग के कार्मिकों को रखने के लिए  सब एकमत थे. ऐसे में, इन मामलों में कांग्रेस की नानुकुर करने की संभावना लगभग ख़त्म हो गई है. 


आज रामलीला मैदान में इतिहास रचा गया, अनेक दल एक मंच पर आकर जनता से अपनी बात साफ़ तौर पर बयान कर रहे थे. तथापि एक कमी खली, मंच पर जनता के साथ नेताओं के सवाल-जवाब भी होने चाहिए थे, इससे अपने देश की लोकतान्त्रिक जड़ों को और मजबूत बनाया जा सकता है. एक बात तो माननी ही पड़ेगी, ऐसा लोकतान्त्रिक संवाद सिर्फ अन्ना ही करा सकते थे कोई और नहीं. अन्ना हजारे अपने गाँव में भी चौपाल लगाते हैं और वहां सबसे स्पष्ट बातचीत की जाती है. सब सामान, सबको हक, सबका दुःख एक, एक के ज्ञान का लाभ सबको... ऐसी ही थी आज की चौपाल. बधाई के पात्र हैं वो दल और नेता जिन्होंने अन्ना से मंच साझा किया, जनता को प्रमुखता दी और अपने दंभ को किनारे कर समस्या का हल सुझाया. 


कांग्रेस को समझना पड़ेगा कि उन्होंने जैसा सोचा था वैसा नहीं हुआ, राहुल गाँधी को वैसा खुला मैदान नहीं मिला जैसा वो चाहते थे परन्तु यह अच्छा ही हुआ. राहुल गाँधी के लिए ये चौपाल एक सबक है, एक मौका है यह समझने का कि जनता  की आवाज़ कुचलने की बजाये अपनी आवाज़ बुलंद करें देशहित में. आश्चर्य है, विदेश में पढ़े-लिखे युवा नेता यह नहीं समझ पा रहे हैं और एक गाँव में रहने वाला ७५ वर्षीय वृद्ध संचार और संवाद की ताक़त बखूबी समझ रहा है और उसका सुप्रयोग भी कर रहा है. अनेक वृद्धों और नेताओं की तरह अन्ना हजारे को फेसबुक से कोई शिकायत नहीं है. कहते हैं ना, जाकी रही भावना जैसी, प्रभू मूरत देखि तिन तैसी. आगाज़ अंदाज़ बयां करता है, अन्ना का यह अंदाज़ भविष्य में एक अच्छे लोकपाल बिल का आश्वासन दिलाता है. अब कोई साथ दे ना दे, ये कारवां तो आगे बढ़ता चला जा रहा है अपनी मंजिल की ओर. 


# गुप्त ऊष्मा - Latent Heat

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