मेहनत का विकल्प नहीं

"मैम ! पहला पेपर आप सेट किए थे क्या .. वही पूछा है जो आप पढ़ाए  थे । मैम आप पढ़ाओगे तो रुकूंगा.. नहीं तो जा रहा हूं गांव वापस।" पिछले साल भी यही कहा था कि आप पढ़ाओगे तो रुकूंगा नहीं तो मैं जा रहा हूं वापस। पर.....

कोचिंग में अच्छी खासी क्लास चल रही थी कि इसी बीच अंकित श्रीवास्तव और टीना डाबी प्रकरण हो गया। मैंने अंकित का ज़ोरदार तरीके से पक्ष लिया और जिससे लगभग पूरी क्लास ज़बरदस्त मेरे खिलाफ हो गई। मुझे whatsapp पर और facebook पर खुलेआम बदनाम किया गया और अत्यंत कटु वचन सुनाए गए। बहुत बुरा समय था वह क्योंकि ना केवल इससे मेरे आर्थिक हितों का नुकसान हो रहा था बल्कि मेरी इंटीग्रिटी पर प्रश्न उठाए जा रहे थे जो कि एक ईमानदार इंसान होने के कारण मेरी बर्दाश्त के बाहर थे। *

पर मैं कहां मानने वाली थी ...जिद्दी की जिद्दी। मैंने साफ कर दिया था कि आरक्षण से सफलता लेना मेरे यहां नहीं चलेगा। आपको पढ़ना पड़ेगा। याद करके आना पड़ेगा । नहीं तो.. बाहर खड़े करवा दूंगी कान पकड़कर सबके सामने । सब देखेंगे और हंसेंगे कि यह हैं होने वाले ऑफिसर ।

क्लास में रोना-धोना मच गया । "नहीं मैम माफ़ कर दीजिए ..10 मिनट दे दीजिए ..याद करके बताते हैं। "  3 दिन यह प्रक्रम चला उसके बाद बच्चे खुद याद करके आने लगे। उस समय संविधान की क्लास चल रही थी और संयोग देखिए कि उन तीन दिनों में जो प्रिपरेशन कराई गई थी वही प्रश्न कल आयोग ने पूछ लिया। हाहाहा....

मैं मन ही मन सोचती थी कि ना तो मेरी ईमानदारी कम होती है ना मेरा तेवर कम होता है । कर चुकी मैं तो कोचिंग का बिज़नस । अब यह लोग बाहर जाते ही मेरी वो बुराई करेंगे कि एक बच्चा ना आने वाला । पर अंदर ही अंदर एक आवाज कहती "ईमानदारी तो नहीं छोडूंगी । एक दिन इनके जीवन में ऐसा आएगा जब यह महसूस करेंगे कि किसी ईमानदार से पाला पड़ा था ...कोई तो ईमानदार इनके जीवन में आया था । " पर आर्थिक कारणों से 3 दिन बाद मुझे थोड़ा शांत होना पड़ा जिसका असर बच्चों के चेहरे के हाव भाव में दिख रहा था । वह सर नीचे करके मुस्कुराते थे कि मैं ठीक से डांट नहीं पा रही हूँ। तो इस प्रकार मैंने बैलेंस बनाया ईमानदारी और अपने काम के बीच।

दरअसल , आरक्षण के लिए लोगों का नजरिया और ज्ञान दोनों ही सही नहीं है।  इस पर एक वीडियो डालूंगी जल्दी ही।आशा करती हूं इस बार बिना किसी पूर्वाग्रह के आप मेरी बात सुनेंगे और समझेंगे। गलती ना अंकित श्रीवास्तव की है ना टीना डाबी की । हमें दोनों को समझना होगा तभी बनेगा एक अच्छा भारत...  है ना.... 🇮🇳
 टेक केयर😊
【* उस समय मनीषा दहारिया, शाहिद अहमद , कुणाल शर्मा और प्रशांत रंजन ने मेरा साथ दिया था जिसको मैं कभी नहीं भूल सकती। यही वह वक्त था जिसने मुझे अच्छे से समझाया कि जाति और धर्म से ऊपर इंसान होता है । थैंक्स मनीषा.... आई लव यू ❤ अब कोई कितनी भी कोशिश करें आपस में बैर उत्पन्न करने की ... मेरी तरफ से तो उसे कभी सफलता नहीं मिलेगी।】

Comments

  1. संज्ञा जी, आपकी रचना बहुत ही अच्छी है. अआप इसी तरह लिखते रहिये.

    http://www.hindisuccess.com/

    ReplyDelete

Post a Comment

SHARE YOUR VIEWS WITH READERS.