आभार आपका !
आज ब्लॉगर के रूप में मेरा एक वर्ष पूर्ण हुआ। शौक में शुरू किया ये सिलसिला मुझे इतना प्रिय लगने लगा जैसे कि मैं सदा से यही करना चाहती थी। यकीन नहीं होता कैसे मैं एक -एक लेख के बाद पाठकों की संख्या देखती थी । कभी सोच भी नहीं सकती थी कि एक वर्ष में एक अनजान नाम, चलती-फिरती हिंदी और विषय का अल्पज्ञान होते हुए भी यह सम्मिश्रण ३७०० पेज व्यूज़ का आंकड़ा छू लेगा।
'परिष्कार' नाम पर अपना हक़ ना समझते हुए मैं ब्लॉग का नाम परिवर्तित कर रही हूँ। साथ ही आपसे अपनी पहली स्वप्रकाशित कविता 'ख़ुशी' के साथ ही मेरी और आपकी इस सहयात्रा को अपनी कविता ' कारवां ' में प्रस्तुत कर रही हूँ।
ब्लॉग के एक वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर एक बार पुनः अपनी ख़ुशी के लिए आपको परिष्कार के आंकड़ें बता रही हूँ । आशा करती हूँ कि बोर महसूस करने के बाद भी आप यह आंकड़ें वैसी ही तन्मयता से पढने का अभिनय करेंगे जैसे कि एक माँ अपने बच्चे की प्रशंसा करने में फूली नहीं समाती है और हम उसे धैर्य से 'सुनने' का अभिनय करते हैं। धन्यवाद ! मुझे आपसे यही उम्मीद थी।
कुल दृष्टिपात - ३७००
भारत - १७०७
अमेरिका - ११५१
सर्वाधिक पढ़े गए लेख -
१ बोल मेरी मछली कितना पानी - १३८
२. चलोगी अकलतरा के पागलखाने ...! एक मर्मस्पर्शी अनुभव - १२०
३. राजा वही जो प्रजा का ख्याल रखे - ४५
ब्लॉग में लेखन का उद्देश्य धनार्जन नहीं था।अलग -अलग पृष्ठ जैसे 'उन्मुक्त आकाश' और 'जानिए ' आपको अच्छे लगे इस हेतु आभार स्वीकार करें। सर्वाधिक ख़ुशी तब होती है जब आपकी प्रतिक्रिया ब्लॉग में या फेसबुक में पढने को मिलती है। उम्मीद है कि आप आगे भी अपनी मूल्यवान प्रतिक्रियाएं देंगे।
इस सफ़र के दौरान हुई धृष्टता को श्री राहुल गाँधी, श्री लालकृष्ण आडवाणीजी और श्री मनीष तिवारी क्षमा करें। उनसे स्वयं बात करने की हैसियत मेरी नहीं है परन्तु जो भी विचार प्रस्तुत किये 'सर्वजन हिताय ' जानकार ही प्रस्तुत किये।
विशेष आभार -
मेरी पुत्री 'सौम्या ' को आभार जिनकी ताजगी ने मुझे नवजीवन दिया। साथ ही, दरिद्र नारायण 'अनामिका' को भी धन्यवाद जिनका मेरे जीवन में पदार्पण जैसे मुझे मुझसे मिलाने के ही लिए हुआ था।
ख़ुशी
दिल आज खुश है कि बहार आई, दिल आज खुश है कि धूप की चादर है छाई
Dil aaj khush hai ki bahaar aaii, dil aaj khush hai ki dhoop ki chadar hai chhaii
बहोत दिनों से पसरा था अँधेरा, कितने दिनों बाद उम्मीदों की हरियाली है छाई
Bahot dinon se pasra tha andhera, kitne dinon baad ummeedon ki hariyali hai chhaii
कितने अरमानों से देखे थे सपने, उन सपनों की आहट है आई
Kitne armanon se dekhe the sapne, un sapnon ki aahat hai aaii
अंगडाई लेकर मुस्कान आई, अब नैनों में जान है आई
Angadaii lekar muskaan aaii, ab nainon me jaan hai aaii
कब से उम्मीद के बादल दे रहे थे धोखा, अब जाकर बरसात है आई
Kab se ummeed ke badal de rahe the dhokha, ab jaakar barsaat hai aaii
भीग गई ये सूखी धरती, विश्वास की कोंपल फिर से उग आई
Bheeg gai ye sukhi dharti, vishvaas ki konpalen fir se ug aaiin
बालों का पकाना सिखा गया कि, ग्रीष्म के बाद बहार ही आई
Balon ka pakna sikha gaya ki, grishm ke baad bahar hi aaii
याद रहेगा ये सबक सोच कर ही आँखों में चमक है आई
Yaad rahega ye sabak soch kar hi aankhon me chamak hai aaii
दिल आज खुश है कि बहार आई, फिर से वो सपनों की रंगीन दुनिया लाई
Dil aaj khush hai ki bahar aaii, fir se wo sapnon ki rangeen duniya lai
पत्थर पे घिस घिस के हिना खुशबू वाला रंग है लाई
Patthar pe ghi-ghis ke heena khushbu wala rang hai lai
इसके सिवा और ईश्वर से क्या चाहेगा कोई, आज' उनकी ' बहोत याद आई
Iske siwa aur Ishwar se kya chahega koi, aaj 'uski' bahot yaad aai
हल्का हुआ दिल, होठों पे है मुस्कान और आँखों में श्रद्धा आंसू भर लाई
Halka hua dil, hothon pe hai muskaan aur, aankhon me shraddha aansoon bhar lai .
कारवां
कारवां जुड़ता गया
राह में बढ़ते-बढ़ते
छोड़ चले थे जिन मुकामों को
आज उन्हीं की तलाश है
जैसे रास्ता कोई गोल बना गया
मिलते हैं तो लगता है "तुम?"
नहीं मिलते तो न पता चलता
दुनिया 'उसकी' , राह 'उसकी'
जिसे मैं समझी थी अपना
वह मंजिल भी 'उसकी'
हंसती हूँ, मैं यहाँ क्यों?
बचपन का खेल याद आ गया
गोल-गोल रानी , इत्ता-इत्ता पानी
बोल मेरी मछली कित्ता पानी
खुश हूँ, गोल-गोल-गोल रानी .....
इत्ता इत्ता पानी... तैरना जानती हूँ अब
शुभकामनाएं.
ReplyDeleteबधाई!
ReplyDelete