दो ना रि यां
नारी - कैसा विचित्र शब्द है ये जिसका मतलब है 'नहीं रे' ।
बच्चे पैदा करे "हाँ री" , खाना पकाए "हाँ री" , सितम सहे "हाँ री" , रीति-रिवाज निभाए "हाँ री" , पति और बच्चों की फिक्र में उपवास करे "हाँ री", गाय-बैल ना हों तो हल खींचे "हाँ री", अंतरिक्ष पर जाये "हाँ री", देश चलाये " हाँ री" .. पर नाम है ना री ? स्त्री सूचक इस शब्द 'नारी' से मुझे आपत्ति है।
कल का अखबार रोज़ की तरह एक दर्दनाक घटना बलात्कार की जानकारी दे रहा था। रायपुर में एक महिला पुलिस कर्मी के साथ गाँव के कुछ बदमाश युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। इस दौरान बुरी तरह पीटा गया पीड़ित महिला का पुरुष सहकर्मी थाने से पुलिस बल लेकर आया और रात को खोजबीन के बाद २ बदमाश युवकों को शिनाख्त के आधार पर पकड़ा गया। आज उन युवकों को उनके गाँव में घुमाया गया । दोनों युवकों के परिवार वाले सदमे में थे और बार-बार कह रहे थे " तूने हमें कहीं का ना छोड़ा। ये दिन देखने के लिए पैदा किया था तुझे ?" पूरा गाँव शर्मिंदा हो रहा था इस घटना के कारण। पर पता नहीं क्यों पत्रकार बंधू बलात्कार की खबरों को हमेशा ऐसे छापते हैं ' एक अबला की अस्मत लुट गई'।
जब अपराध महिला का नहीं है तो उसकी इज्जत क्यों गई ? हाँ , निजता भंग हुई है, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना भी मिली है उसे। जिसे वह महिला कैसे सहे कोई नहीं बता सकता। पर जो गुनाह उस महिला का नहीं उससे उसकी इज्जत कैसे चली गई ? गाँव वाले ठीक कह रहे हैं , इज्जत उन लड़कों की गई है ना की पीडिता की। पत्रकार वर्ग को इस दिशा में सोचना चाहिए। ऐसी खबर से लड़की पर और उसके घर वालों पर क्या गुजरती होगी । एक तो शारीरिक - मानसिक प्रताड़ना और ऊपर से समाज की दकियानूसी सोच । हमें इस बात को ध्यान में रखकर आवश्यक कदम उठाना चाहिए।
मेरी पसंदीदा 'हाँ रियों' में से एक म्यांमार की लोकप्रिय नेता आंग सां सू की का दल NLD म्यांमार (बर्मा) के उपचुनाव जीत गया है। दो दशकों तक नजरबन्द यह नेता अपने देश में बेहद लोकप्रिय हैं और देशवासी इन्हें "मम्मा" बुलाते हैं । यह बात नज़रंदाज़ नहीं की जा सकती है कि जहाँ विकासशील राष्ट्रों श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल में नेता अपने देशवासियों का समर्थन खो रहे हैं वहीँ एक महिला अत्यंत कठिन परिस्तिथियों में अपने परिवार से दूर, देश-दुनिया से दूर होकर भी इतना सम्मान पा रही है।
देश और जीवन के इस कठिन दौर में वे निश्चित ही भारत से सहयोग और समर्थन की आशा करती रही होंगी परन्तु भारत ने कभी खुलकर उनका समर्थन नहीं किया। भारत में म्यांमार के सैनिक प्रशासकों का स्वागत किया जाता रहा है। परन्तु यह भी सत्य है कि पिछले २५ वर्षों में एक भी प्रधानमंत्री म्यांमार के दौरे में नहीं गया। इस वर्ष २५ वर्षों बाद भारत के प्रधानमन्त्री म्यांमार गए और उन्होंने ऑंग सां सू की से भी मुलाक़ात की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह उनसे बड़ी आत्मीयता और विनम्रता से मिले जैसे कह रहे हों कि भारत की ओर से आपका सम्मान।
क्या महिला किसी दायरे में बंधी है ? हमें उसके लिए तय करना होगा कि वह क्या करे और क्या नहीं। वह क्या कह सकती है और क्या नहीं ? जवाब है , 'नहीं'। प्रत्येक मानव स्वतंत्र है उस हद तक जहाँ से दूसरे की स्वतंत्रता शुरू होती है। दुर्घटनाएं घर बैठे भी होती हैं । सावधानी और सुरक्षा आवश्यक है परन्तु इस आधार पर पूर्णतः बंधन लगाना भी अव्यवहारिक होगा। आज के दौर में लड़कियां खुद को साबित कर चुकी हैं। वे 'हाँ री' हैं नाकि मात्र अबला नारी ।
क्या महिला किसी दायरे में बंधी है ? हमें उसके लिए तय करना होगा कि वह क्या करे और क्या नहीं। वह क्या कह सकती है और क्या नहीं ? जवाब है , 'नहीं'। कोई भी मानव स्वतंत्र है उस हद तक जहाँ से दूसरे की स्वतंत्रता शुरू होती है। दुर्घटनाएं घर बैठे भी होती हैं । सावधानी और सुरक्षा आवश्यक है परन्तु इस आधार पर पूर्णतः बंधन लगाना भी अव्यवहारिक होगा। आज के दौर में लड़कियां खुद को साबित कर चुकी हैं । वे 'हाँ री' हैं नाकि मात्र अबला नारी ।
ReplyDeleteएकदम सटीक....