जेठ की भीनी -भीनी तपिश
इस वर्ष जेठ के महीने में रुपये की घटती कीमत और पेट्रोल के बढ़ते दामों ने सोने और चाँदी को भी पतली गली दिखा दी। लोग भूल गए भ्रष्टाचार को अचार न बनने देने की बातें और दौड़ पड़े लड़े -भिड़े जैसे भी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने। घर में दूध हो या न हो गाड़ी में पेट्रोल ज़रूर हो ताकि चीनी,सब्जी, गैस, सुबह के अखबार वगैरह का इंतज़ाम तो किया जा सके। अब कौन चलाये इस जमाने में साईकिल-वायकिल ?भाड़ में जाए महंगाई, हम और कमाएंगे।
आर्थिक जीवन की ही तरह सामाजिक जीवन की भी दुर्गति हुई है जेठ के महीने। चारों तरफ से बलात्कार, अपहरण की खबरें ऐसे उफन कर आ रही हैं जैसे कोसी नदी में बाढ़ आती है। हाय-हाय मची है । कहाँ जाएँ, क्या करें औरतें ? क्या यही है औरतों की ज़िन्दगी ? बेबस चिल्लाती,बेसुध कॉलेज के बाहर ज़िंदा लाश की तरह पड़ी औरत।
सोच रही हूँ क्या लिखूं ? किसके बारे में लिखूँ ? नकारात्मकता को जीतने देना मेरा स्वभाव नहीं है और सच कडवा है। हाँ,सत्य कडवा तो है पर गरल तो नहीं। और गरल हो भी तो हम हिन्दुस्तानी उसे कंठ आभूषण बना लेते हैं। इधर 45.4 डिग्री तापमान ने सबके पसीने छुड़ा दिए हैं। सारी बाहरी खुशियाँ नवतपा की विदाई का इंतज़ार कर रही हैं। पर कुछ बातें घर बैठे ही ठंडक का एहसास करा रही हैं।
पहली,सत्यमेव जयते को मिलने वाला जन प्रतिसाद अन्ना और रामदेव बाबा के आन्दोलन की जगह भर रहा है। आखिर कब तक हम नेहरु-गाँधी की समर्थन और विरोधी टीमों की तरह आपस में खेलते रहेंगे ? हमें उस समय को छोड़कर इस समय क्या सही है और क्या गलत तय करना होगा । अपने-अपने स्तर पर देश के लिए और मानवता के लिए समय चक्र को अच्छाई की ओर घुमाये रखना होगा। इसके लिए विशेष प्रयास करने पड़ेंगे। बैठे रहने से काम ना चलेगा । प्रकृति का नियम है कि वह व्यवस्था को अव्यवस्था में और अव्यवस्था को व्यवस्था में बदलती रहती है। ऐसे में अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति के लिए हमें प्रयास करने ही होंगे।
दूसरी, न्यायालय ने आरुषि हत्याकांड में तलवार दंपत्ति पर केस दर्ज करने की इजाजत सीबीआई को दे दी। हालात और सबूत इशारा कर रहे हैं कि तलवार दंपत्ति ही अपनी बेटी की कातिल हो सकती है। मुझे याद है जब आरुषि की पोस्ट मार्टम रिपोर्ट के इंतज़ार में डॉक्टर तलवार अपने भाई के साथ हॉस्पिटल के बाहर खड़े थे। उनके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी। मुझे नहीं पता सच क्या है ? अच्छा ही होगा यदि यूपी पुलिस की रिपोर्ट गलत साबित हो पर कभी सोचा है कि यदि यूपी पुलिस सही कह रही थी तो उनकी बात ना मानकर आरुषि के साथ सब अन्याय कर रहे थे।
तीसरी, मेरे शहर में 'आकार-2012' का आयोजन हुआ जिसमे मैंने पहली बार रंगों के प्रयोग कर चित्रकारी की। जी हाँ ! मैंने पहली बार रंगों का प्रयोग किया। बहुत मज़ा आया। मई की गर्मी और रंगों और लकीरों की मेरी नासमझी की जोड़-तोड़ ने पूरे मई को जुलाई बना दिया। ज़िन्दगी में कितना भी बुरा वक़्त हो, जंग हो, बेरूखी हो, धोखा हो, हताशा हो सब भूल जायेंगे अगर दो बूँद ज़िन्दगी की पी लेंगे। किसी गुरूद्वारे माथा टेक कर , रंगों से दीवार और आँगन के कैनवास को सँवार कर, ताल-तलैय्या में तैर कर, किसी रक्त दान , नेत्र दान शिविर में शामिल होकर, किसी सफ़ेद शेर की आँखों को देखकर,बहुतेरे हैं मार्ग। आपके अपने मार्ग। चुनिए एक-एक कर और डूब जाइए इस जेठ की भीनी -भीनी तपिश में जीवन के रंगों से घुलने-मिलने।
आकार-२०१२
मधुबनी चित्रकला
आकार-२०१२
मधुबनी चित्रकला
Waakyi is tapish me 1 thandak ka ehsaas dilaya is lekh ne. Parishthtiyaan badal rahin hain, haalaat badal rahe hain aur hame bharmaane k raaste v badal rahe hain. Akhtiyaar karna hoga is tapish me 1 thandak bhara raashta dhoondhne ka.
ReplyDelete1 umda lekh k liye haardik badhayi.
bahut sundar tarike se shabdo ko lay aur pravah diya hai sangya.. bahut badhiya alekh..bhinn bhinn rang dikhata hua..
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