डस्ट बिन


वो डस्ट बिन
आइना दिखाता था
छुपे सच का

पुराने पल
किंचित मखमल
लोरी हैं आज

सिकुड़ा ख़त
तनकर बेलाग
फिर न खुला

टूटे केश थे
मुड़े हुए सपने
सहमे बैठे

चार माह का 
ममता का आँचल 
बिन सांस का 

एक टिकट 
पिचकी फुटबॉल 
धूमिल अश्रू 

स्वच्छ आँगन 
हो जाए डस्ट बिन 
जले दीपम

Comments

  1. बहुत प्यारे हायकू...

    अनु

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    1. धन्यवाद अनु जी !
      आपकी टिपण्णी पढ़कर बहुत अच्छा लगा :)

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  2. बहुत धन्यवाद यशवंत जी .
    आपके शब्दों ने मेरा मनोबल बढ़ाया :)

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  3. बहुत सार्थक हाइकु .. बेहद उम्दा

    आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..अगर आपको भी अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़े।
    आभार!!

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  4. नमस्ते यशवंत जी

    सर आपने मेरी पोस्ट अपने ब्लॉग में शामिल की इसके लिए मैं आपकी बहुत आभारी हूँ. किन्तु आज मुझे नयी पुरानी हलचल में 'डस्ट बिन ' की जगह 'झरोखा' की लिंक दिखी. यदि मुझसे कोई गलती हुई हो तो क्षमा करें.

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  5. बहुत बढ़िया ....नीरव जी

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