एक पत्र का अवसान ३
घने जंगलों के बीच बोधगया में गौतम बुद्ध का शाँत चित्त ध्यान अपने पचास हजार शिष्यों के साथ भी प्रकृति में ऐसा समाया होता कि वन पशु पक्षी सब इनके ध्यान में मग्न होते। कोई कोलाहल नहीं .. बस चित्त रूप में जीवन की उपस्थिति।
पाषाण वृक्ष और पौधों का तो कहना ही क्या..! सब के सब ध्यान मग्न .. !!! यहाँ जीवन अपने मूल नैसर्गिक रूप में पंच तत्व में सीमित है - अग्नि जल वायु मृदा और आकाश। परंतु सृष्टि की रचना ऐसी है कि जब हम इन पंच महाभूतों के रूप में पहुँचते हैं तो असीम हो जाते हैं ...।
शिष्यों के अनेक प्रश्न तो गौतम के दर्शन मात्र से तिरोहित हो जाते हैं जैसे सूर्य के आगमन के साथ ही निशा का घोर अंधकार बिना किसी प्रश्न के तिरोहित हो जाता है। यह शांति और स्पष्टता केवल गौतम के आंतरिक सूर्य के तेज का परिणाम है जो चंद्रमा की तरह शीतल भी है।
यह असीम नीरवता शीतलता स्पष्टता ही आकर्षण है बोधिसत्व का। वह चित्ताकर्षक मुस्कान... बरबस ही लोगों को बुद्ध बनने का लोभ दे देती है। क्या धरती क्या गगन क्या पवन क्या हिरण .. मनुष्य तो मनुष्य.. ये सब भी एक कदम आगे बढ़ते तो चार कदम वापस लौट आते गौतम की ओर......।
(क्रमशः) ...
#संज्ञा_पद्मबोध ©
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