एक पत्र का अवसान (६)
बिहार में एक गांव है बिसाख .. जोकि रुदमती नदी के किनारे स्थित है। जनश्रुति है कि एक बार शिव और माता पार्वती यहाँ मिले थे अत: गांव का नाम बिसाख (विशाखा) और नदी का नाम रुदमति (रूद्र देव) पड़ा। यह जगह ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह और उनके परिवार के दरबार के लिए विख्यात है.. या कहें.. कुख्यात है।
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह के तीन पुत्र हैं - ठाकुर रघुबर प्रताप सिंह, ठाकुर नरहरि प्रताप सिंह और ठाकुर बलदेव प्रताप सिंह। ये तीनों पुत्र अपने सज्जन पिता की छत्रछाया से विरक्त रहने वाले उद्दंड नवयुवक हैं जिनके अत्याचार से बीर गांव के लोग सदैव आतंकित रहते हैं।
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह की भार्या कुलवंती देवी सिंह ठाकुर बेहद शालीन और ममतामयी स्त्री हैं परंतु इनकी ममेरी बहन जो अनाथ हो गई थी और समझ लीजिए कि दहेज में इनके साथ बिसाख आ गई है... न केवल कलही है अपितु ठाकुर जी के पुत्रों को बिगाड़ने में अपनी मुख्य भूमिका निभाती है।
इन्हें शकुनि और मंथरा का मानसिक मेल माना जाता है। अपनी बहन के प्रेम का कैसे दुरुपयोग किया जाता है गांव के लोग यही बातें करते हैं शकुन के बारे में। शकुन सुंदर तो हैं परंतु मन में क्लेश काजल की तरह चिपका रहता है और जब तक यह गांव वालों का रोना गिड़गिड़ाना न सुन लें इनके मन में संतोष का भाव नहीं आता है।
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह की खेती पूरे गांव में फैली है और सभी खेत ठाकुर जी को तय समय पर लगान देते रहते हैं। ठाकुर जी की हवेली किसी महल से कम नहीं है ... बीच में एकाध एकड़ का चबूतरा है ... निस्तार और पीने के पानी के लिए हवेली के अंदर ही बीस फीट गहरा कुँआ भी है ... दो तरफ कमरे हैं ... एक तरफ रसोई और शौचालय और गायों की गौशाला है जहाँ बेहद ह्रष्टपुष्ट बीस गाये और उनके बछड़े रहते हैं। इस पूरी महलनुमा हवेली को एक बड़ी मजबूत दीवार से घेरा गया है जिससे यह हवेली किसी महल सा आभास देती है।
ठाकुर जी की हवेली से सबसे करीब पूर्व दिशा की ओर दीनानाथ के पिता कल्याण की खेती बाड़ी है। कल्याण ठाकुर जी का सबसे पुराना विश्वस्त है। ठाकुर जी के आँखों के संकेत भर की देर है और कल्याण पूरी बात समझ भी लेता है और गांव वालों को समझा भी देता है। उसकी बदले में ठाकुर जी से कल्याण की बस यही आशा है कि वे दीनू पर अपनी कृपा बनाए रखें।
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह के तीन पुत्र हैं - ठाकुर रघुबर प्रताप सिंह, ठाकुर नरहरि प्रताप सिंह और ठाकुर बलदेव प्रताप सिंह। ये तीनों पुत्र अपने सज्जन पिता की छत्रछाया से विरक्त रहने वाले उद्दंड नवयुवक हैं जिनके अत्याचार से बीर गांव के लोग सदैव आतंकित रहते हैं।
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह की भार्या कुलवंती देवी सिंह ठाकुर बेहद शालीन और ममतामयी स्त्री हैं परंतु इनकी ममेरी बहन जो अनाथ हो गई थी और समझ लीजिए कि दहेज में इनके साथ बिसाख आ गई है... न केवल कलही है अपितु ठाकुर जी के पुत्रों को बिगाड़ने में अपनी मुख्य भूमिका निभाती है।
इन्हें शकुनि और मंथरा का मानसिक मेल माना जाता है। अपनी बहन के प्रेम का कैसे दुरुपयोग किया जाता है गांव के लोग यही बातें करते हैं शकुन के बारे में। शकुन सुंदर तो हैं परंतु मन में क्लेश काजल की तरह चिपका रहता है और जब तक यह गांव वालों का रोना गिड़गिड़ाना न सुन लें इनके मन में संतोष का भाव नहीं आता है।
ठाकुर दामोदर प्रताप सिंह की खेती पूरे गांव में फैली है और सभी खेत ठाकुर जी को तय समय पर लगान देते रहते हैं। ठाकुर जी की हवेली किसी महल से कम नहीं है ... बीच में एकाध एकड़ का चबूतरा है ... निस्तार और पीने के पानी के लिए हवेली के अंदर ही बीस फीट गहरा कुँआ भी है ... दो तरफ कमरे हैं ... एक तरफ रसोई और शौचालय और गायों की गौशाला है जहाँ बेहद ह्रष्टपुष्ट बीस गाये और उनके बछड़े रहते हैं। इस पूरी महलनुमा हवेली को एक बड़ी मजबूत दीवार से घेरा गया है जिससे यह हवेली किसी महल सा आभास देती है।
ठाकुर जी की हवेली से सबसे करीब पूर्व दिशा की ओर दीनानाथ के पिता कल्याण की खेती बाड़ी है। कल्याण ठाकुर जी का सबसे पुराना विश्वस्त है। ठाकुर जी के आँखों के संकेत भर की देर है और कल्याण पूरी बात समझ भी लेता है और गांव वालों को समझा भी देता है। उसकी बदले में ठाकुर जी से कल्याण की बस यही आशा है कि वे दीनू पर अपनी कृपा बनाए रखें।
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध
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