एक पत्र का अवसान (४)
स्वयं ईश्वर का वास हो जिस स्थान पर ... वहाँ जल काँच सा पारदर्शी... वायु रेशम सी मखमली... सुगंध पारिजात सी पावन और धरा गुलाल से स्पर्श वाली होती है। ऐसे दिव्य लोक में पंकज अपने रक्तिम वर्ण में न केवल सुंदर लगते हैं अपितु ह्रदय को भी कोमलता से तृप्त कर देते हैं। जगह-जगह नीले पुष्पों की बेलें... पीत वर्ण पुष्पों के संग बतियाती दिखती हैं.. वहीं देसी गुलाबी गुलाब और पत्तों की नैसर्गिक सुगंध मृदा की महक.. नासिका को और दीप्त कर देती हैं।
ऐसे शाँत अरण्य को छोड़कर जाने का मन तो नहीं करता परंतु .....
भगवन् ने कहा है तो ठीक ही कहा है .. सोचकर...
दीनानाथ अपने कृशकाय शरीर को हिम्मत से उठाकर लाठी की टेक ले अपनी पादुका पहन कर किसी तरह ज़ोर लगाकर खड़ा हुआ... । चेहरे पर झुर्रियां इस क़दर छाई हैं कि वास्तविक चेहरा दिखता नहीं... आँखों से ढरते चिंता के अश्रु अब श्रद्धा के अश्रु में बदल चुके थे।
दीनानाथ को अपनी समस्या का उपाय तो 'सिद्धार्थ' से नहीं मिल सका था परंतु उनके शब्दों ने ह्रदय में प्रवेश कर लिया था...
''आष्टांगिक मार्ग ही दुखों से बाहर आने का उपाय है.... ।"
भारी कष्टों के साथ खड़े होते दीनानाथ को कोमल पत्ता आश्चर्य से देख रहा था... उसे समझ नहीं आ रहा था कि दीनानाथ को इतना कष्ट क्यों है ?!!!
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध ©
ऐसे शाँत अरण्य को छोड़कर जाने का मन तो नहीं करता परंतु .....
भगवन् ने कहा है तो ठीक ही कहा है .. सोचकर...
दीनानाथ अपने कृशकाय शरीर को हिम्मत से उठाकर लाठी की टेक ले अपनी पादुका पहन कर किसी तरह ज़ोर लगाकर खड़ा हुआ... । चेहरे पर झुर्रियां इस क़दर छाई हैं कि वास्तविक चेहरा दिखता नहीं... आँखों से ढरते चिंता के अश्रु अब श्रद्धा के अश्रु में बदल चुके थे।
दीनानाथ को अपनी समस्या का उपाय तो 'सिद्धार्थ' से नहीं मिल सका था परंतु उनके शब्दों ने ह्रदय में प्रवेश कर लिया था...
''आष्टांगिक मार्ग ही दुखों से बाहर आने का उपाय है.... ।"
भारी कष्टों के साथ खड़े होते दीनानाथ को कोमल पत्ता आश्चर्य से देख रहा था... उसे समझ नहीं आ रहा था कि दीनानाथ को इतना कष्ट क्यों है ?!!!
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध ©
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