एक पत्र का अवसान (५)
दीनानाथ अपनी कलाइयों सी पतली जंघा पर काँपते हाथ से सहारा लेकर 'आह्' की आवाज़ करता खड़े होता है। धीमे-धीमे आगे बढ़ते कदम हल्के सूखे गोबर पर कब पड़ते हैं .. कमज़ोर दृष्टि के दीनानाथ को पता भी नहीं चलता है... और यहाँ से हमारा जीर्ण शीर्ण पत्र दीनानाथ के शरीर के बोझ तले दबे... चला जाता है अपने जीवन के अगले पड़ाव पर।
जैसे-जैसे गौतम का अरण्य दूर होता जा रहा है दीनानाथ को अपना शरीर बोझिल मालूम पड़ रहा है। क्या है जो घट रहा है जिसके कारण शरीर भारी हो रहा है.. शरीर के रोम-रोम में कष्ट सुई की भांति चुभ रहे हैं समझा नहीं जा सकता है।
पर हमारे जीर्ण शीर्ण पत्र को तो पर्णकुटीर में चारपाई में जा बैठा दीनू उतना ही भारी लग रहा है जितना वह बोधगया के अरण्य में था। मन की व्यथा यह पत्र क्या जाने ... !!!
दीनू को थका हारा देख अहाते में खड़ी धेनु व्याकुल हो गई है परंतु क्या कर सकती है वह... दीनू की पत्नी अंबाला तो ...... है नहीं दीनू की सेवा सुश्रुषा करने... । यही कारण दीनानाथ को दिन रात खाए जाता है पर वह अपनी विवशता कैसे कहे ?
दीनू अपनी पादुका पहने ही चारपाई पर निढाल हो जाता है..। धेनु दूर खड़ी और व्याकुल हो उठती है अपनी माँ सी अंबाला को याद कर। क्या करे वह कि अंबाला को उस पीड़ा से मुक्ति दिला सके... यह सोच वह ज़ोर से रंभाने लगती है .. परंतु दीनू ह्रदय की गहराइयों तक पीड़ासिक्त हो ... नीरव अश्रु बहाकर चुपचाप करवट बदल देता है।
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध ©
जैसे-जैसे गौतम का अरण्य दूर होता जा रहा है दीनानाथ को अपना शरीर बोझिल मालूम पड़ रहा है। क्या है जो घट रहा है जिसके कारण शरीर भारी हो रहा है.. शरीर के रोम-रोम में कष्ट सुई की भांति चुभ रहे हैं समझा नहीं जा सकता है।
पर हमारे जीर्ण शीर्ण पत्र को तो पर्णकुटीर में चारपाई में जा बैठा दीनू उतना ही भारी लग रहा है जितना वह बोधगया के अरण्य में था। मन की व्यथा यह पत्र क्या जाने ... !!!
दीनू को थका हारा देख अहाते में खड़ी धेनु व्याकुल हो गई है परंतु क्या कर सकती है वह... दीनू की पत्नी अंबाला तो ...... है नहीं दीनू की सेवा सुश्रुषा करने... । यही कारण दीनानाथ को दिन रात खाए जाता है पर वह अपनी विवशता कैसे कहे ?
दीनू अपनी पादुका पहने ही चारपाई पर निढाल हो जाता है..। धेनु दूर खड़ी और व्याकुल हो उठती है अपनी माँ सी अंबाला को याद कर। क्या करे वह कि अंबाला को उस पीड़ा से मुक्ति दिला सके... यह सोच वह ज़ोर से रंभाने लगती है .. परंतु दीनू ह्रदय की गहराइयों तक पीड़ासिक्त हो ... नीरव अश्रु बहाकर चुपचाप करवट बदल देता है।
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध ©
Comments
Post a Comment
SHARE YOUR VIEWS WITH READERS.