एक पत्र का अवसान (९)
धावक की अगली टाँगे ज़मीन से टकराते ही ज़मीन में एक बड़ा दरवाज़ा खुला और अंधेरी सुरंग में दौड़ते हुए धावक आगे बढ़ने लगा। तेज़ी से टापों की आवाज़ सुरंग को और भयंकर बना रही थी। इस लंबी अंधेरी सुरंग से अनेक रास्ते निकल रहे थे... दाएँ हाथ पर सत्रहवें मोड़ पर ठाकुर जी ने लगाम खींची... ज़ोर से दौड़ते धावक के पैर हवा में उछले.. और उसने दायीं ओर छलांग लगाई..।
धावक दौड़ते-दौड़ते दौड़ता एक सुरंग से बाहर निकला जहां हल्के हरे रंग की घास थी और गगनचुंबी पेड़ .. आसमान को छूने का प्रयास कर रहे थे... यहां पेड़ों पर चढ़ती गिलहरियां खरगोश जितनी बड़ी और चीटियां पीले रंग की थी। कुछ फूल इंसान के चेहरे जितने बड़े और गहरे लाल रंग के थे। जगह जगह सफेद फूलों की लताएं पेड़ों को सुंदरता से सजाएं थीं।
धावक जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था ... पानी का शोर सुनाई पड़ रहा था...। ठाकुर जी को देखकर बकरे से मुंह वाला हिरण ठिठक जाता है कुछ देर तक ठाकुर जी को ध्यान से देखता है और दौड़ता हुआ एक गुफा की ओर चला जाता हैं। संभवतः वह किसी समाचार को सुनाने की तत्परता में था।
धावक को थपथपाते हुए ठाकुर जी कहते हैं,
" सोमल आता ही होगा... उसे हमारे आने का समाचार मिल गया होगा "
" सोमल ने दिव्यांगना को बताया होगा हमारे आने का प्रयोजन .. " आश्चर्य से धावक ने पूछा
" पता नहीं परन्तु बताना तो चाहिए " धावक को फिर से थपकाते हुए ठाकुर जी ने लगाम खीचा और तेजी से झरने की ओर निकल पड़े..।
सुंदर मायावी स्थान पर झरना बहुत विशाल था ... झरने सेेे आता शोर इतना प्रचंड था कि लगता था कि जैसे किसी बड़े पहाड़ को ढूंढते हुए हाथियों का झुंड दौड़ा जा रहा है। झरने के २० फीट दूर तक पानी की बड़ी - बड़ी बूँदें चेहरे पर ऐसे थपेड़े मार रहीं थीं कि सामान्य मनुष्य तो अपने अश्व पर से संतुलन खोकर गिर ही जाए परंतु ठाकुर जी और धावक का कहना ही क्या.. !!! वे दोनों पराक्रमी वीर अधिक तीव्रगति से गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रहे थे कि अचानक् सामने से ..............
(क्रमशः)
#संज्ञा_पद्मबोध ©
आज का विमर्श :-
दृढ़ प्रण बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करने का साहस देता है फिर क्या पशु और क्या मनुष्य ।
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बहुत अच्छा लेख है Movie4me you share a useful information.
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏😊
Deleteरघु १,२,३ की कहानी अवश्य पढ़ें और कैसी लगी बताएं।