फिर हुई एक देवी की अवहेलना
बिलासपुर. अरपा नदी के पुल के नीचे एक नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनकर भीड़ इकठ्ठा हो गई, पास में ही सिम्स अस्पताल में उसे भर्ती कराने पर पता चला कि यह बच्ची कुछ ही घंटे पहले पैदा हुई है और नियत समय से कुछ पंद्रह दिन पहले पैदा हुई है. बच्ची का वजन मात्र दो किलोग्राम है. पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है परन्तु चार दिनों बाद भी पुलिस यह नहीं पता लगा पाई है कि ये बच्ची किसकी है? यह अभी तक पता नहीं चल सका है कि किस कारण से बच्ची को ऐसी दयनीय हालत में छोड़ा गया है? क्या यह उसके लड़की होने का कसूर है या कोई और वजह है .
नवरात्र पर ऐसी घटना एक तरह की घृणा और शर्मिंदगी पैदा करती है. हम लड़की को क्यों छोड़ देते हैं? वो देवी हैं, लड़कों से ज्यादा अपने माता-पिता के प्रति लगाव रखती हैं और उनके काम आने को तत्पर रहती हैं. आज की लड़कियाँ घर और बाहर दोनों के काम संभालती हैं. क्या यह प्रत्येक नारी का दैवीय रूप नहीं है, एक हाथ में बच्चा, दूसरे में कडाही, तीसरे में ऑफिस की फाइल और चौथे में समाज सेवा का काम , यह कोई साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है. और यदि नाजायज सम्बन्ध ऐसी घटना के जिम्मेदार हैं तो कहाँ है वो मर्द जो तनिक भी जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहता है?
असली माता-पिता का तो पता नहीं परन्तु कई निःसंतान दम्पत्तियों ने अवश्य उस नवजात प्यारी सी बच्ची को गोद लेने के लिए अस्पताल प्रशासन से बात की है जो उक्त बच्ची के माता-पिता की तरह दिनरात उसकी देखरेख कर रहें हैं. अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वो बच्ची को मातृछाया को सौंप रहें है और जो दम्पती बच्ची को गोद लेना चाहते हैं उन्हें जिले के एस डी एम को अपनी सिफारिश सौंपनी होगी. देखिये, दुनिया का खेल, यहाँ कौन अपना है और कौन पराया कह नहीं सकते. जिन्होंने जन्म दिया उन लोगों ने तो मुंह फेर लिया वहीँ जिनका उस बच्ची से कोई नाता नहीं वो उसे अपनाने के लिए तड़प रहे हैं.
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