Karvan
कारवां जुड़ता गया
राह में बढ़ते-बढ़ते
छोड़ चले थे जिन मुकामों को
आज उन्हीं की तलाश है
जैसे रास्ता कोई गोल बना गया
मिलते हैं तो लगता है "तुम?"
नहीं मिलते तो न पता चलता
दुनिया 'उसकी' , राह 'उसकी'
जिसे मैं समझी थी अपना
वह मंजिल भी 'उसकी'
हंसती हूँ, मैं यहाँ क्यों?
बचपन का खेल याद आ गया
गोल-गोल रानी , इत्ता-इत्ता पानी
बोल मेरी मछली कित्ता पानी
खुश हूँ, गोल-गोल-गोल.....
इत्ता पानी..... तैरना जानती हूँ अब
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