Shraavan Mela
मेले में झूला था , बच्चे थे , फुग्गे थे ,
चाट थी , रंग - बिरंगी चुदियाँ , कांच से सजे घाघरे भी थेकोई बच्चा इधर दौड़ रहा था , कोई उधर दौड़ रहा था
किसी को बुड्ढी का बाल खाना था तो किसी को और तेज झूले में झूलना था
कितनी नरम हवा , कितनी खुशियाँ बिखेरती मुस्कुराहटें
सन्डे को Njoy करने की जिद्द थी वहां ..
फिर भी था वहां एक सन्नाटा जैसे कुछ ठहर गया है
जैसे कुछ बदल गया है , जबकि बदला कुछ भी न था
वो उछलकूद भी कम थी , सबसे अच्छी चाट खाने के बाद भी कम थी
उस शान्ति से जो मिली नसीब से , जैसे समुन्दर भी pause हो गया हो
सब कुछ वैसा ही था , वो खेल , बुड्ढी का बाल , चाट के ठेले
पर कुछ ठहर गया था , गहरा और शांत
अब भी वो सब था , लोगों से टकरा जाना , लाइन में पीछे रह जाना
साइकिल स्टैंड में जगह न मिलना , बच्चे का हर बात पर जिद्द करना
पर अब सबकुछ शांत था , मिला कुछ भी नहीं
खोया जैसा भी कुछ लगता नहीं , सब वैसा ही है पर अब कोई प्रश्न नहीं
शायद इस मेले का असर अब मुझपर कम होता है
ये संसार सागर में शांति और आनंद का संतुलन अद्भुत प्रतीत होता है .
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