The Judgement Day
'ओह! गांगुली केवल १८ रन बनाकर आउट हो गया ?!! मुझे तो लगा था कि आज गांगुली की हाफ सेंचुरी जरुर बनेगी|' शैली अपसेट हो गई और उठकर सब्जी चलाने किचन पहुँच गई| 'सब्जी तो तैयार हो गई' शैली ने सोचा,'अब रोटियां बनाना भी शुरू कर देती हूँ इससे पहले की अरविन्द आये ।' कुछ चार या पांच रोटियां ही सिकी होंगी कि घर की डोरबेल बजी| शैली हाथ पोंछती हुई दरवाजे की तरफ बढ़ी| उसने थकान छिपाकर मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला| अरविन्द बेहद थका हुआ था। ब्रिफकेस सोफे पर रखते हुए बोला, ' बहुत गर्मी है, ४३ डिग्री टेम्परेचर है आज , हालत खराब हो गई|' शैली ने एक गिलास ठंडा पानी दिया, ' कैसा रहा आज का दिन अरु?' एक बार में पूरा पानी पीते हुए अरविन्द ने कहा,' मत पूछो.. अभी मैं बहुत थका हुआ हूँ। खाना बन गया है क्या? जल्दी से दे दो ,बहुत भूख लगी है।'
अरविन्द ने टीवी खोला और स्टार स्पोर्ट्स लगाते हुए पूछा, 'गांगुली आज खेला क्या? किसने जीता टॉस?' शैली ने कहा,' पुणे ने | गांगुली आउट हो गया १८ रन बनाकर |' 'शिट!' अरविन्द ने चैनल बदल दिया| जबतक शैली ने खाना परोसा अरविन्द फ्रेश होकर आ गया और खाने की टेबल में बैठ गया| दोनों खाना खाते -खाते समाचार देखते जा रहे थे.| शैली ने अपने हाथ से बनाया लाल मिर्च का भरवाँ आचार दिया तो अरविन्द उसकी तरफ मुस्कुराकर देखने लगा। शैली भी मुस्कुराने लगी। अरविन्द ने न्यूज़ चैनल लगा दिया | शैली न्यूज़ देखते हुए बोली, ' पता है हम सिर्फ दो दिनों के मेहमान हैं| ' अरविन्द ने मुस्कुराते हुए पूछा,' तुम्हे कैसे पता?' शैली ने आँखों से टीवी की तरफ इशारा किया|
'एक अमेरिकी ज्योतिषी ने ऐलान किया है की २१ मई २०११ को दुनिया तबाह हो जाएगी... क्या ज्योतिषी का दावा सच है? क्या हमारा ज्योतिष भी यही कहता है? पूरी दुनिया में इस भविष्यवाणी को लेकर बहस हो रही है, क्या हम सिर्फ ४८ घंटों के मेहमान हैं ? ' 'उंह! ये टीवी वाले! लगे रहते हैं सबको उल्लू बनाने में| कोई काम नहीं है इन्हें |' अरविन्द ने खाना ख़तम किया और बेडरूम की तरफ चला गया | शैली ने जल्दी से किचेन साफ़ किया और फ्रेश होकर बेड पर लेट गई| जब तक अरविन्द अपनी नोवेल के पेज पलटते हुए उससे कुछ पूछता, शैली सो चुकी थी| अरविन्द कुछ देर तक उसे देखता रहा फिर वह भी अपनी तकिया को शैली की तकिया से चिपकाकर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर सो गया। जैसा कि वास्तु शास्त्र अच्छी शादीशुदा जिंदगी के लिए सजेस्ट करता है |
रात को करीब २.३० पर एकदम से पलंग हिला | शैली और अरविन्द दोनों गहरी नींद में थे उन्हें कुछ नहीं पता चला | एक मिनट के अन्दर फिर से पलंग हिला | एकदम से शैली उछल कर उठी और अरविन्द को हिलाकर बोली,' अरु! उठो! भूकंप आ रहा है ।' अरविन्द हडबडाकर उठा और बोला, 'क्या ?' टीवी बैठ गया है क्या दिमाग में ? कुछ भी बोले जा रही हो। ' कि तभी एक झटका और लगा | अरविन्द की तो नींद ही उड़ गई| 'बाहर चलो',दोनों घर से बाहर की तरफ भागे | तभी अरविन्द कुछ सोचता हुआ अन्दर की तरफ दौड़ा | शैली ने उसे रोकने के लिए हाथ पकड़ा पर वो नहीं रुका। जोर से चिल्लाता हुआ बोला' कुछ रुपये रख लेता हूँ|' शैली के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं | उसने बाहर का दरवाजा खोल रखा था| पूरी बिल्डिंग के लोग घबरा कर बाहर की तरफ भाग रहे थे| जल्दी से दौड़ते हुए खुद को गिरते हुए टीवी से बचाते अरविन्द आगे बढ़ ही रहा था तभी कुर्सियां सरक कर उसके सामने आ गई| उसने कुर्सियां हटाकर दौड़ लगाई| खिड़कियाँ और अलमारी का शोर बढ़ रहा था| १० मंजिल ऊँची बिल्डिंग से लोग बाहर की और भाग रहे थे, बहुत शोर हो रहा था| अरविन्द को सामान में फंसा देख शैली की घबराहट बढती जा रही थी|
मिसिज दत्ता शैली को चिल्लाई, 'क्या देख रही हो, मरना है क्या? भागो जल्दी, जल्दी भागो|' शैली और जोर से घबरा गई और चिल्लाई ,' अरु ! जल्दी|' अरविन्द हड़बड़ाता हुआ पैसे संभलकर बाहर आया | दोनों आपस में टकराते हुए सीढियों से नीचे दौड़ रहे थे कि एक छोटी सी ७ साल की स्वीटी उनसे टकरा गई| शैली ने उसे सम्भाला । सातवे माले में ही उसके घर के सामने रहने वाले सिंग अंकल की पोती| शैली ने स्वीटी को गोद में उठाया और अरविन्द का हाथ जोर से पकड़कर नीचे उतरने लगी | पूरी सीढ़ी लोगो से भरी थी, सब एक-दूसरे को धक्का दे रहे थे| बच्चे और बूढ़े फंस गए थे | कुछ लोग सिर्फ अपनी सोच रहे थे और लोगो को कुचलते हुए, धकलते हुए आगे बढ़ रहे थे | तो वहीँ कुछ एक-दो लोग, अशक्त लोगो की मदद कर रहे थे | उन्हें देखकर कुछ और लोग भी मदद को आगे बढे और औरतों को पहले नीचे उतरने दिया और पीछे छूट गए लोगों की मदद करने लगे|
मिसिज दत्ता शैली को चिल्लाई, 'क्या देख रही हो, मरना है क्या? भागो जल्दी, जल्दी भागो|' शैली और जोर से घबरा गई और चिल्लाई ,' अरु ! जल्दी|' अरविन्द हड़बड़ाता हुआ पैसे संभलकर बाहर आया | दोनों आपस में टकराते हुए सीढियों से नीचे दौड़ रहे थे कि एक छोटी सी ७ साल की स्वीटी उनसे टकरा गई| शैली ने उसे सम्भाला । सातवे माले में ही उसके घर के सामने रहने वाले सिंग अंकल की पोती| शैली ने स्वीटी को गोद में उठाया और अरविन्द का हाथ जोर से पकड़कर नीचे उतरने लगी | पूरी सीढ़ी लोगो से भरी थी, सब एक-दूसरे को धक्का दे रहे थे| बच्चे और बूढ़े फंस गए थे | कुछ लोग सिर्फ अपनी सोच रहे थे और लोगो को कुचलते हुए, धकलते हुए आगे बढ़ रहे थे | तो वहीँ कुछ एक-दो लोग, अशक्त लोगो की मदद कर रहे थे | उन्हें देखकर कुछ और लोग भी मदद को आगे बढे और औरतों को पहले नीचे उतरने दिया और पीछे छूट गए लोगों की मदद करने लगे|
अचानक शैली धक् से रह गई 'अरु का हाथ उसके हाथ में नहीं था|' 'अरु कहाँ है? ' उसके कदम ठिठक गए पर स्वीटी की खातिर वो आगे बढ़ गई| वो जानती है, अरु दूसरों को निकाल कर ही आएगा ' पर वो खुद न फंस जाये', शैली के चेहरे पर डर बढ़ता जा रहा था| स्वीटी भी घबरा कर जोर से रो रही थी | खुद को संभाले या स्वीटी को चुप करे, अरु कहाँ है? यही सब सोचती हुई धड -धडाकर लगभग फिसलती हुई वह नीचे उतरने लगी| कि तभी किसी ने उसे बुरी तरह कंधे पर धक्का दिया| स्वीटी का सर दीवार पर लग गया और वो और जोर से रोने लगी| शैली चिल्लाई, 'तुम्हे अपनी जान की पड़ी है बस !' पलट के देखा तो संगम था | शैली ने उसे गुस्से से देखा पर वो अनदेखा कर फिर से धक्का मारकर सीढियों से नीचे उतर गया|
भूकंप के झटके बढ़ते जा रहे थे | बिल्डिंग बुरी तरह हिल रही थी| शैली ने स्वीटी को जोर से सीने से चिपकाया और उसे चुप करते हुए नीचे उतरने लगी| अब स्वीटी भी शैली से चिपककर चुप हो गई| शैली नीचे पहुंचकर सबके साथ खड़ी हो गई और स्वीटी की पीठ सहलाने लगी | उसकी कुछ सहेलियें भी वहाँ खड़ी थी | तभी नीत्ता ने शैली के कंधे पे हाथ रखते हुए पूछा ' अरविन्द भाईसाहब कहाँ है?' शैली ने कहा ' पता नहीं| लोगों की मदद कर रहे हैं| मेरा तो दिल बैठा जा रहा है| किसी तरह स्वीटी को बचाते हुए नीचे आई हूँ| ' इतने में एक तेज भूकंप का झटका आया और पूरी बिल्डिंग ताश के पत्ते की तरह गिरने लगी | शैली आँखें फाड़कर देखती रह गई| हे भगवन! ये क्या हो रहा है ? अरु अन्दर है |
शैली को चक्कर आने लगे | वो चिल्लाने लगी, ' अरु! अरु!' कितनी घुटन हो रही थी| वो बार बार भगवान् से प्रार्थना कर रही थी की अरु ठीक हो | पर पता नहीं वो कहाँ है , क्या करूँ? कितनी कोशिश की पर आवाज तक नहीं निकल रही थी गले से | ' अरु!' स्वीटी और जोर से रोने लगी | शैली के कुछ समझ नहीं आ रहा था | पूरी बिल्डिंग गिर चुकी थी और अरु कहीं नहीं दिख रहा था न ही स्वीटी के पापा दिख रहे थे| इतने में स्वीटी के दादाजी सामने आये और शैली से बोले 'बेटा डर मत | अरविन्द भी आता होगा| वो नीचे तक आ गया था| तब शैली की जान में जान आयी और वो तेजी से बिल्डिंग की तरफ भागी | तभी किसी ने उसका कंधा छूकर उसे हिलाया | शैली कुछ नहीं सुनना चाहती थी पर वो आगे भी नहीं बढ़ पा रही थी | कि एकदम से शैली आँखों के सामने अँधेरा छा गया |अरविन्द की आवाज आई, ' शैली! क्या हुआ? इतनी डर क्यों गई हो?' अरविन्द ने शैली के माथे पर आया पसीना पोछा और पूछा।
शैली बेहद घबराई हुई थी | उसने आँखें खोली और अरविन्द की तरफ देखते हुए बोली ' कुछ नहीं | मैं सपना देख रही थी | तुम ठीक तो हो ना?' अरविन्द ने शैली का हाथ पकड़कर कहा , ' हाँ | सब ठीक है| ' शैली एकटक अरविन्द की तरफ देखने लगी। उसे लगा जैसे कुछ बदल गया है आज उसके अन्दर | उसने तकिया बेड के सिरहाने रखा और अरविन्द को भी उसी तरफ आने को कहा | उसे पता था कि आज वाकई में जजमेंट डे था | वो और अरविन्द साथ में अच्छे से रहने के लिए किसी शास्त्र के नहीं बल्कि प्रेम के मोहताज हैं जो उनके बीच है और कयामत के दिन तक रहेगा । अब शैली आराम से सो गई | अरविन्द को समझ नहीं आया कि तकिया की दिशा अचानक क्यों बदल दी गई ? वह एकटक बस शैली के चेहरे की शांति और मुस्कराहट देख बिना कुछ पूछे सो गया।
Good story. i like it.
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