Shanu ka Janm

   मैं जबलपुर में अपनी नानीजी के घर में थी जो की एक बड़े परिवार की आवश्यकता को देखते हुए तीन मंजिलों वाला घर था और हर मंजिल में छः कमरे थे. उन दिनों बड़े परिवारों का चलन होता था और घर के मुखिया का काम सबका पालन-पोषण होता था.भारत में आज से २०  वर्ष  पहले पुरुषप्रधान समाज होता था  जहाँ घर का मुखिया पुरुष होता था और वही कमाने जाता था जबकि स्त्रियाँ केवल खाना बनाने  तथा घर का रखरखाव करने का काम करती था . हालाँकि मेरे नानाजी अपने समय में बंधकर कभी नहीं रहे और अपनी सभी लड़कियों को कोलेज तक की शिक्षा दिलाई जो कि एक आम बात नहीं थी और साथ ही घर के सामने स्थित हनुमान ताल में सभी नाती-नातिनों और पोते-पोतियों को तैरना भी खुद सिखाया.
  उन दिनों घर के  काम आसान नहीं थे  क्योंकि पहले चटनी पिसने, दोसे का घोल बनाने और कपडे धोने के लिए इलेक्ट्रानिक सामान नहीं होते थे. इसलिए हम सभी छोटे बच्चे -बच्चियां घर के काम में बड़ों की मदद करते थे और होड़ लगाकर ज्यादा काम करते थे ताकि हमारी मम्मियां हमसे प्रसन्न रहें और हमें खूब खेलने मिले. इस संयुक्त परिवार में ४ बुजुर्ग , जिसमे एक दम्पती नानाजी और नानीजी थे जिनके ९ बच्चे थे, जिनमे ६ लड़कियां और ३ लड़के थे.     
  २५ मई (१९८९/१९९०) की सुबह बाकी दिनों से कुछ अलग थी,एक अजीब सा उत्साह और आने वाले शिशु के बारे में जानने की उत्सुकता भी बहुत थी मेरे मन में. ज्यादा उम्मीद एक प्यारी-सी लड़की की थी क्योंकि हमारे मंझले मामाजी पहले से ही एक पुत्र के पिता बन चुके थे. हम सब घर में खुशखबरी का इंतज़ार कर रहे थे किचेन में बैठकर चाय बनाई जा रही थी और नाश्ते की तैयारी चल रही थी की मामाजी तेजी से सीढियाँ चढ़ते हुए ऊपर आये और हमें बड़ा जोर से मुस्कुराते हुए संतुलित आवाज में बताया की मामीजी ने पुनः पुत्र को जन्म दिया है.' क्या?!! नहीं मामाजी, आप झूठ बोल रहे हैं , हम लोगों को उल्लू बना रहे हैं आप .' हमेशा की तरह मैंने सीरियल वाले अंदाज में अपनी प्रतिक्रिया दी. वैसे मैं पूरी तरह गलत नहीं थी क्योंकि हमारे मामाजी को किसी को उल्लू बनाने में बड़ा मजा आता है, इसलिए जब वो मुस्कुराकर नीचे की तरफ देखते हुए कोई बात कहते हैं तो 'दाल में कुछ काला है' की फीलिंग आ ही जाती है.
  बार-बार पूछने पर भी जब जवाब 'लड़का हुआ है , हम कह रहे हैं ना' ही मिला तो हमें मामाजी की बात पर यकीन आ ही गया. फिर क्या था... मारे ख़ुशी के हम सब उछलने लगे और मामाजी को बधाइयाँ दीं. सबको फोन से खबर देने के बाद जब मामाजी नहा कर  और नाश्ता करके फ्री हो गए तब हम दोनों बहनें लटक गईं उनपर की वो हमें अस्पताल ले चले अपने साथ, हम भी नवजात शिशु को देखने के लिए बेताब थे. हम दोनों मामाजी की स्कूटर में उनके पीछे बैठकर चल दिए अस्पताल. वहां मुस्कुराती हुईं मामीजी को देखा और अपने छोटे प्यारे-से  भाई से भी मिले जो बेहद भोला लग रहा था. चूंकि ये शिशु श्री भानुजी के अनुज थे इसलिए इनका नाम पड़ा 'शानू'. 

  शानू बहुत ही भोला और कांफिडेंट लड़का है बचपन से , सबसे लडियाना, मामीजी  से चिपकना, भानु के साथ मिलकर सबकी बैंड बजाना और महेंदी की वही डिजाईन लगवाना जो मामीजी के हाथों में लगी हो उनकी बचपन की विशेष यादों के रूप में मेरे ह्रदय में संयोजित हैं . बचपन की इनकी मस्ती अब भी ख़त्म नहीं हुई है, शानू २१ वर्ष के होंगे और आज भी जब बोलना शुरू करते हैं तो भोलेपन और शरारत का मेल उन्हें बेहद प्यारा बना देता है. अब शानू 'मृदुल' बन गए हैं और मृदुल अब इंजिनीअर बन गए हैं. मृदुल आगे भीऔर तरक्की करें  ऐसी उन्हें जन्मदिन के दिन मेरी शुभकामनाएं हैं ! हैप्पी बर्थ डे शानू !! 


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