मेरा ननिहाल ३

पहले गर्मियों में छत में सोने जाते थे सब। नियम था , अपना बिस्तर खुद ले जाओ और सिर पे बैलेंस बनाकर ऊपर छत तक कछुआ छाप अगरबत्ती भी ले जाओ। बिना गिराए ले जाने वाले को ईनाम मिलेगा। काहे का ईनाम गद्दा तक न ले जा पाएँ वो बार बार फिसले हाथ से और सब दाँत निपोरें और इस चक्कर में अपना गद्दा भी गिरा दें। फिर वहीं सीढ़ी में बैठकर आँसू पोछके हँसें..😂😂😂

हम बारह पंद्रह ममेरे मौसेरे भाई बहन थे और सारे हँसोढ़। जितना गिरें उतना खुश हों 😀😀😀  इस प्रकार बड़ी मेहनत से ऊपर गद्दे लेजाएँ और छत में जाकर सामने का शांत  तालाब और घर के चारों ओर बने मंदिर देखें। हर मंदिर से जुड़ी बचपन की कोई न कोई मजाकिया बात मौसियां बताएँ और हम लोग और हँस हँस के लोटपोट हो जाएँ।

इसके बाद सब अपना अपना बुराई पुराण शुरु करें 😀😀😀 सब हाथ में चावल ले कथा सुने टाईप ध्यानमग्न हो ठुड्डी पे हाथ रख कथावाचक को घूरें और बीच बीच में जोश से बोलने लगें " जेई बात हमने भी बोली रही पर हमारी सुनता कौन है.." 😃😃😃 मतलब अब जो ये सही प्रूव्ह हुईं हैं तो इंदिराजी की गद्दी खतरे में पड़ गयी है बिल्कुल .. हा हा...

रात बढ़ते बढ़ते सब बच्चे आकाश में ध्रुव तारा, सप्तर्षि तारामंडल खोजें और जैसे ही नींद पड़े कि मच्छर भुन्नाएँ कान पर। तिसपर अक्सर इंद्रदेव प्रसन्न हो जाएँ और वो झमाझम बारिश शुरू कि सारे बिस्तर ऊठाके फिर भागें नीचे... हे भगवान् .. 😀😀😀

पंखा देखत रात गई ..आई ना लेकिन light
मच्छर गाते रहे कान में .. Party All Night..

सोकर कब उठते थे मत पूछिएगा... ग्यारह के बाद मुझे गिनती नहीं आती है...

😂😂😂

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