Queen Kangana

एक वक्त था जब मुझे कंगना रानौत सख्त नापसंद थी..
पर हुआ यह कि एक दिन youtube पर मैंने ट्रेलर देखा""' मैं अकेली घूम रही हूं...  मेरा हाथ पकड़ने वाला कोई नहीं.... मैं अकेली एफिल टावर देख रही हूं मेरे साथ फोटो खींचने वाला कोई नहीं .... मेरी जिंदगी तो झंड हो गई है... और उसके बाद पीछे गाना बजता है... तूने जो पिलाई तो हंगामा हो गया ..हां हंगामा हो गया.... "

तनु वेड्स मनु मुझे कुछ खास अच्छी नहीं लगी थी हीरो पसंद है पर हीरोइन कुछ खास नहीं...

पर क्वीन का ट्रेलर देखने के बाद मैं खुद को रोक नहीं पाई और फिल्म देखने चली गई । एक ऐसी फिल्म जिसके हीरो हीरोइन से मुझे कोई मतलब नहीं था। मैं बस यह देखना चाहती थी कि हिरोईन अकेले हनीमून पर क्यों गई थी ?

 फिल्म शुरू हो गई.. एक साधारण लड़का स्क्रीन पर आया और इतना बुरा व्यवहार अपनी होने वाली पत्नी के साथ किया कि हॉल में बैठी हुई लड़कियां क्या लड़के तक सन्न रह गए। हम सर खुजलाने लगे कि फिल्म तो खत्म हो गई अब यह दिखाएगा क्या ?

इसके बाद फिल्म शुरू होती है पेरिस में ... जहां कंगना को बहुत अच्छे दोस्त मिलते हैं... लड़के हो या लड़कियां ... देश कोई भी हो... रंग कोई भी हो.. होते सब इंसान हैं। एक अजीब सी जर्नी कंगना की शुरू होती है जहां अनजान लोग उस का हौसला बन जाते हैं और उसे पूरी तरह रियल पर्सन बना देते हैं।

फिल्म में कंगना का नाम रानी था जो शुरू में अजीब लगता है..  परंतु फिल्म खत्म होने के बाद .. आज तक..  मुझे कंगना Queen ही लगी हैं। उसके बाद आई तनु वेड्स मनु पार्ट 2 ... अच्छी फिल्म थी हीरो तो पसंद है ही .. पर इस बार हीरोइन भी अच्छी लगी even ज्यादा अच्छी लगीं।

उत्तराखंड के लोग दिल के सरल होते ऐसा मेरा इलाहाबाद के हॉस्टल का अनुभव है । कंगना को भी छल कपट पूर्ण व्यवहार करते नहीं देखा। हमेशा यही पढ़ा कि उनका मजाक उड़ाया जाता है , उनकी बहन रंगोली पर एसिड अटैक हुआ और उसके बाद ताजा प्रकरण ऋतिक विवाद हो गया।

कंगना हमेशा अपने बोल्ड अवतार में सामने आती है इन सब विवादों को अपने क्लियर कट अंदाज में उन्होंने निपटाया जिसकी वजह से वे लड़कियों की रोल मॉडल बन गई।

इस बीच अचानक हालाकि मैं पढ़ती नहीं हूं परंतु भास्कर में है कोई नाम याद नहीं आ रहा... और इंफेक्ट ...चौरसिया जी.. हां.. मैं उनका नाम याद करना भी नहीं चाहती थी.... चलिए अब याद आ गया ...उन्होंने लिखा के रितिक कितने महान परिवार के हैं और कंगना की औकात ही क्या है ...कभी इसके साथ रही कभी उसके साथ रही... स्टेशन में सोई... मुझे बहुत बुरा लगा। उन्होंने ऋतिक के बचाव के लिए कंगना की इज्जत की वह धज्जियाँ उडा़ईं ..   कि पूछिए नहीं । एक कलेक्टर की पोती जो अपने दम पर अकेले खड़ी होती है बिना किसी पुरुष का नाम लिए तो उसको कोई कुछ भी बोल सकता है ... और जब वह ऐसा बोल रहा होता है यह भूल जाता है कि इज्ज़त बोलने वाले की उतरी। कंगना तो हमारे लिए क्वीन है और रहेंगी।

कल अचानक फिर नजर पड़ गई पेपर पर जिसमे चौरसियाजी ने नरगिस की माताजी के संघर्ष को बड़े अच्छे से बताया । क्यों... डरते हो संजय दत्त से... कंगना के बारे मे लिखते समय नहीं  ध्यान आया  यह कंगना का संघर्ष था क्योंकि आपको कंगना का डर नहीं है। यही सोच है भारतीय पुरुषों की ...ऋतिक हों.. चौरसिया हो ...असफल बेटे के बाप शेखर सुमन हो .. सफल करण जोहर .. सब चिढ़े हुए अटैकिंग लोग.

कंगन कभी बदलेंगीं भी नहीं..  क्यों कि उन्होंने यह छोटा सा मुकाम अपने दम पर हासिल किया है। कंगना आप हमारे दिल में हो इज्जत से हो और हमेशा रहोगी।

शेखर सुमनजी आसमान पर मत थूकिए और अपने बेटे की असफलता अब पचाइए... क्यों अपनी हँसी उड़वा रहे हैं...

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