मेरा ननिहाल १
लू और धूप से याद आया... जबलपुर मप्र में हमारी नानीजी का घर ऊँचाई पर पड़ता है। सामने बड़ा और खूबसूरत तालाब है हनुमानताल । घर के आजू बाजू आगे पीछे चारों तरफ हनुमानजी के मंदिर हैं। गर्मियों में सारी बेटियों, नातिन नातियों के आने के बाद कुछेक पचास लोगों का परिवार हो जाता था हमारा। स्वाभाविक है कभी कभी पानी की कमी की समस्या हो जाती थी।
अब सब बच्चों को उनकी उमर के मुताबिक बाल्टी पकड़ाकर नीचे सुभाष टॉकिज के कुएँ में पानी लेने भेजा जाता। हमारी बारह पंद्रह बच्चों की फौज पूरे रास्ते में फैल जाती 😃 .. कभी हम पूरे रास्ते पानी ढोएँ तो कभी बाल्टी आगे पास कर दें। छोटे भाई बहनों के हाथ में छोटी सी बाल्टियाँ बहुत स्वीट लगती थीं .. . उधर बैकग्राउंड में मन ही मन साथी हाथ बढ़ाना बजे। उसके बाद सारे हौद में अपनी मेहनत से जमा किए पानी में खूब मस्ती करें 😃😃 मेरे नानाजी और नानीजी दोनों कड़क स्वभाव के थे पर उस दिन हम बच्चे डांट से बच जाते थे 😀😀 ये पूरा काम सब इतने उत्साह से करते थे कि न लू लगती थी न पैर जलते थे.. 😊😊
नानीजी के घर में मेरी बड़ी मामीजी साक्षात् अन्नपूर्णा हैं.. उनके हाथ का खाना इतना स्वादिष्ट होता है कि चाहे वह खिचड़ी ही बना दें आप उंगली चाटते रह जाएंगे पकवानों की तो बात ही क्या है 👌👌👌 .. मेरी दूसरे नंबर की मामी जी मर्मज्ञ हैं .. मतलब ..आपकी परेशानियां , आपकी खुशियां , सब आप उनसे बांट सकते हैं.. बहुत प्यार से जीवन का सार बताती हैं ... 😊 उन्होंने घर में फ्री सिलाई क्लासेज बहुत सालों तक चलाईं। इनके बाद आईं हमारी छोटी मामीजी ..😊 .. उस समय हमारी उम्र 14 -15 साल थी यह नई मामी बिल्कुल नए जमाने की थीं... खूब हंसतीं- हंसाती और नए नए पकवान बनातीं... और हमको दीदी बोलतीं ☺ हमको बहुतै शरम आती अपने लिए दीदी सुनकर.. 😅😅
एक दिन दोपहर का खाना बनाते समय नाना जी आ गए कि तुरंत खाना खाना है और ऊपर से संज्ञा के हाथ की ही रोटी खानी है यह भी प्यारभरा फरमान आ गया .. उन दिनों चौके में मिट्टी के चूल्हे होते थे । हम थोड़ा डर भी गए और खुश भी हो गए कि आज तो रोटी सेकने मिलेगी.. इतने में हमारे छोटे मामा जी भी आ गए और उन्होंने भी कह दिया कि हमें पापड खाना है और पापड़ संज्ञा सेंकेगी 😀😀😀 बस फिर क्या था मामीजी ने रोटियां बेलीं और चूल्हे का काम हमें पकड़ा दिया । बड़ी मुश्किल से हमने मामीजी के मार्गदर्शन में रोटियां और पापड़ सेके। हालाँकि वे थोड़े कच्चे - जले थे पर हमारे नाना जी अपने स्वभाव के विपरीत बहुत तारीफ करके पूरा खाना खाए 😇😇
यह तो जैसे हमारी लॉटरी ही निकल गई थी 😀 उसके बाद हमने सबको खूब होशियारी झाड़ी कि नाना जी को हमारे हाथ की रोटी और पापड़ अच्छे लगे . यहां तक कि दादाजी के घर में भी सब को चुप करा दिया यह कहकर कि नाना जी तक ने हमारे खाने की तारीफ की है 😃😃😃 बस फिर क्या था ... दौड़-दौड़ के रोटी परसो वाले काम से मुक्ति मिली और हमारे हाथ में किचन का चूल्हा आ गया... मतलब...
.. प्रमोशन 😎😎😎
जल्दी ही हमने नरम रोटियाँ और बढ़िया पापड़ सेंकने शुरू कर दिए .. अपने नानाजी की बदौलत .. आपकी ट्रेनिंग में डाँट, प्यार और विश्वास तीनों था ... 😇😇
May U Rest in Peace in Heaven Nanaji .. 🙏🙏🙏
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