बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!


उफ्फ्फ !! समझ ही नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरू करूँ और क्या-क्या लिखूं? वैसे तो यह समस्या हर बार आती है परन्तु यहाँ जानकारियों का अम्बार है और भावनाओं का आवेग . ऐसा हमेशा होता है कि जब कोई बात दिल के करीब होती है तो वहां दिल की ही चलती है और दिमाग बस दिल का अनुयायी बनकर अपने ज्ञान से हमारे कदम साधे रखता है. फिर, मेरी क्या मजाल कि मैं भारतीयों को चाचा नेहरु के बारे में बताऊँ. उनकी शख्सियत इतनी विशाल और प्रेमपूर्ण है कि बस उसे महसूस किया जा सकता है. वे क्या नहीं थे, एक नेता, एक अनुयायी, स्पष्टवादी, साहसी, एक लेखक और सबसे बढ़कर, हमारे चाचाजी. कितना पारिवारिक माहौल था उस वक़्त, हमारे नेता हमारे रिश्तेदार थे, हमारे घर के बड़े. वो हमारी कमजोरियां दूर करना चाहते थे, वो हमें आगे बढ़ने और सम्मानपूर्वक जीने की राह दिखाने वाले होते थे और अपने विचारों और उच्च चरित्र से हमें प्रभावित कर हमारा मार्गदर्शन करते थे. 

नेहरूजी से मेरा व्यक्तिगत रूप से परिचय तब हुआ जब मैंने उनकी एक किताब पढ़ी, 'पिता के पत्र पुत्री के नाम' जिसमे उनके जेल प्रवास के दौरान इंदिरा गाँधी को लिखे पत्रों का संकलन है. यह जानना रोचक होगा कि यह किताब मैंने इसलिए पढ़ी क्योंकि मुझे इतिहास विषय में रुचि नहीं थी और मुझे  राजाओं के नाम, कुल और तारीखें याद करना बेहद दुश्वार लगता था. मैंने सोचा कि क्यों न ये किताब पढूं ताकि इतिहास से मेरा परिचय अलग प्रकार से हो नाकि पाठ्य पुस्तक के रूप में. परन्तु नेहरूजी द्वारा लिखित पत्रों के इस संकलन से मैं अनेक रूप से प्रभावित हुई. सबसे पहले तो यह बड़ा अजीब लगा कि एक व्यक्ति जेल में बैठकर अपनी बेटी को ख़त में विश्व इतिहास लिख रहा है नाकि व्यक्तिगत संवेदनाएं प्रकट कर रहा है, दूसरी बात यह कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? तीसरी बात, इतिहास केवल तारीखें नहीं है बल्कि महत्वपूर्ण है उसकी सीख जिसके कारण यह विषय उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि विज्ञान. 

समय के साथ जैसे-जैसे मेरी जानकारी बढ़ी, मुझे इस पत्र का सार समझ आने लगा. नेल्सन मंडेला भी जेल में खाली नहीं बैठते थे, अपना काम पूरा कर २७ वर्ष के लम्बे जेल प्रवास के दौरान उन्होंने अद्भुत साहित्य रचा, यही कार्य जवाहरलाल नेहरु और अन्य क्रन्तिकारी भी कर रहे थे. जेल से लिखे उनके पत्र देश की आंदोलनरत जनता  के लिए सन्देश होते थे जिसके माध्यम से वे क्रांति की मशाल जेल से भी जलाए रखते थे. इस प्रकार वो अपने निजी और सामाजिक दायित्व दोनों ही निभाते थे.  साथ ही, यह भी सन्देश देते थे कि परिस्तिथियाँ चाहे जैसी भी हों, हमें हार नहीं माननी है और अपने उद्देश्य में सदैव संलग्न रहना है. यही होती है एक सच्चे मानव की पहचान. 

इन पत्रों में लिखीं कुछ बातें मुझे आज भी याद हैं, पहली, उन्होंने अपनी पुत्री इंदिरा को लिखा कि हम समझते हैं कि नेपोलियन महान था, वह विश्व विजेता था और वह कभी कोई युद्ध नहीं हारा परन्तु यह गलत है. वह अपना आखिरी युद्ध  वाटरलू में हार गया था जबकि भारतीय सम्राट समुद्रगुप्त अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारा. अतः वह नेपोलेयाँ से भी महान शासक और योद्धा था. ये एक अच्छा विचार था भारतियों को उनके अतीत से मिलाने का और उनके अन्दर स्वाभिमान और स्फूर्ति भरने का जिसे अंग्रेज पूरी तरह कुचल देना चाहते थे. अपने पत्रों में उन्होंने इतिहास का केवल तारीखों से नहीं अपितु उससे मिलने वाली शिक्षा को समझाते हुए घटनाओं का वर्णन किया था जिससे मुझे यह पता चला कि हमें स्कूल में इतिहास पढ़ाते क्यों हैं. यही जानना जरुरी था, उसके बाद मेरी स्वयं ही इतिहास में रुचि हो गई और मैं प्राचीन घटनाओं को अलग नजरिये से देखने लगी. 

आज का दौर देखती हूँ तो लगता है कि हमने नेहरूजी के सपने, उनके बलिदान  को और उनकी सीखों को पूरी तरह भुला दिया है. हमारे बच्चे चरित्रवान बनें यह उद्देश्य केवल जिम्मेदार माता-पिता का ही रह गया है, देश के नेता केवल अपनी सोच रहे हैं. बाल मजदूरी, वैश्यावृत्ति, निरक्षरता, कन्या भ्रूण हत्या ने देश को विश्व पटल पर शर्मसार कर दिया है. हमारे बच्चे पढ़ाई के नाम पर मात्र अक्षर ज्ञानी हो रहे हैं, विज्ञान रटा है परन्तु उसका सामाजिक उपयोग नहीं कर रहे है, इतिहास पढ़ा है परन्तु उससे सबक नहीं लेते,  अर्थशास्त्र पढ़ा है परन्तु गरीबों की भलाई में उसका उपयोग कभी नहीं किया और नाहीं ऐसी किसी बात में उनकी रूचि है. किसी की तकलीफ महसूस करना और उसकी मदद करना तो दूर, उसकी हँसी उड़ाने और उसे ज्यादा तकलीफ देने को ही आत्मविश्वास समझते हैं. 

सामाजिक मूल्यों के ह्रास के इस दौर में वो बच्चे जो आज युवा हो गए हैं, किसी सक्षम नेतृत्व का इंतज़ार कर ही रहे थे कि अन्ना आये. लाखों, करोणों युवा पूरे देश से उनके समर्थन में खड़े हो गए. वे लोग जो एकांकी होकर समाज सेवा कर रहे थे एक सूत्र में बांध गए. इसमें योगदान उन युवा खेल प्रतिभाओं का भी है जो अपने विश्वस्तरीय प्रदर्शन से देश को उत्साहित करते रहे और अपने अदम्य साहस से कुटिल राजनीति से जीतकर देशवासियों में देशप्रेम के जज्बे और साहस का प्रसार करते रहे वरना आज हमारा भी वही हाल होता जो पाक क्रिकेट टीम का हुआ है. हमारे देश के जवान लगातार  बाहरी और भीतरी शत्रुओं का साहस के साथ सामना कर रहे हैं. देश में आध्यात्मिक चेतना का संचार हुआ है जिससे कि लोगों की संकुचित सोच में बदलाव आया है जिससे आगे चलकर अवश्य लाभ ही होगा. देश के युवा उद्यमी और नौकरीपेशा युवाओं से देश को बहुत उम्मीदें हैं. आर्थिक विकास आंकड़ों से बढ़कर गरीबों के लाभ तक पहुंचे और महंगाई न बढे तभी होगा सच्चा जन्मदिवस चाचा का. अभी हमें देश के लिए और देश के बच्चों के लिए बहुत कुछ करना है. इस उम्मीद के साथ कि हम अपनी कमजोरियां दूर करेंगे और एक बेहतर भारत का निर्माण करेंगे, आप सभी को बाल दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!

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