महंगाई का असर करें बेअसर
पिछले ३ सालों में जिस तेजी से महंगाई बढ़ी है उसे देखकर लगता है कि आज की तारीख में जिन्दा वही है जो किसी हाल में मर नहीं रहा है वर्ना इतनी महंगाई में गरीब तो क्या साधारण वर्ग के लोग भी बिना मिर्ची खाए ही सी-सी कर खाना खा रहे हैं. इस हफ्ते महंगाई की दर १०.१ प्रतिशत हो गई है. भारत में लगभग ८ प्रतिशत औसत महंगाई दर है जो कि यह तो साबित करती है कि अब हमारे देश में क्रय क्षमता बढ़ गई है परन्तु, यह एक कागजी बात है जिसपर गर्व करना दूर की बात है, बल्कि आशंका यह है कि कहीं देश में फिर से सर्वहारा वर्ग की आत्महत्याओं का सिलसिला न शुरू हो जाये.
इन आंकड़ों पर गौर करें,
महंगाई का रोना क्यों रोना पड़ता है ? प्राचीन काल से ही समाज गरीब और आमिर में बनता हुआ है. सर्वहारा वर्ग हर काल में रहा है, महंगाई रही है फिर आज ऐसा क्या हो गया कि इतनी हायतौबा मची हुई है ? बढती महंगाई और घटते रोजगार के अवसर, बढती महंगाई और बढती जनसँख्या, बढती महंगाई और बढ़ता दिखावा, बढती महंगाई और बढ़ता तनाव मिलकर एक ऐसा परिवेश रच रहे हैं जहाँ, बच्चे, बूढ़े, युवा कोई सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है. फिर, आज की सरकार राजा हर्षवर्धन की भांति महामोक्ष परिषद् का भी आयोजन नहीं करती है जहाँ कि राजा गरीबों को अपनी कमाई हुई दौलत प्रत्येक ४ वर्ष में दान कर देता था. आज के दौर में सब्सिडी दी जाती है जो धीरे-धीरे कम की जा रही है.
बढती महंगाई से बचने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं -
इन आंकड़ों पर गौर करें,
- भारत में बेरोजगारी की दर ९.४ % है.
- भारत में कुल आत्महत्याओं (२००२ - १,५४,००० आत्महत्या ) में से एक तिहाई आत्महत्या १५-२९ वर्ष के लोगों द्वारा की जा रही हैं.
- विश्व में सर्वाधिक ३५% गरीब भारत में निवास करते हैं.
- विश्व बैंक के अनुसार भारत में ४२%तथा भारत सरकार के अनुसार ३२% भारतीय गरीबी की रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं.
- २००४ में १८,२४१ कृषको ने तथा २०१० में १५,९६४ कृषकों ने आत्महत्या की.
- महाराष्ट्र, कर्णाटक, आँध्रप्रदेश,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक किसानों ने आत्महत्याएं कीं.
- भारत सरकार के अनुसार जो ३० रुपये प्रतिदिन कमाता है वह गरीब नहीं है जबकि सत्य तो यह है कि आज से १० वर्ष पूर्व भी ३० रुपये प्रतिदिन के हिसाब से एक दिन का खर्च चलाना संभव नहीं था.
महंगाई का रोना क्यों रोना पड़ता है ? प्राचीन काल से ही समाज गरीब और आमिर में बनता हुआ है. सर्वहारा वर्ग हर काल में रहा है, महंगाई रही है फिर आज ऐसा क्या हो गया कि इतनी हायतौबा मची हुई है ? बढती महंगाई और घटते रोजगार के अवसर, बढती महंगाई और बढती जनसँख्या, बढती महंगाई और बढ़ता दिखावा, बढती महंगाई और बढ़ता तनाव मिलकर एक ऐसा परिवेश रच रहे हैं जहाँ, बच्चे, बूढ़े, युवा कोई सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है. फिर, आज की सरकार राजा हर्षवर्धन की भांति महामोक्ष परिषद् का भी आयोजन नहीं करती है जहाँ कि राजा गरीबों को अपनी कमाई हुई दौलत प्रत्येक ४ वर्ष में दान कर देता था. आज के दौर में सब्सिडी दी जाती है जो धीरे-धीरे कम की जा रही है.
बढती महंगाई से बचने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं -
- ऊर्जा के नवीकरणीय(renewable) स्त्रोतों को बढ़ावा दें ताकि बिजली, पेट्रोल पर होने वाला खर्च कम किया जा सके और ये निर्धन वर्ग को भी सुलभ हों . जैसे, गोबर गैस संयंत्र, पवन ऊर्जा, पनबिजली घर, सौर ऊर्जा संयंत्र आदि.
- कृषकों को कृषि के सही और उन्नत तरीकों से परिचित करें ताकि पैदावार बढे साथ ही, मौसम या खाद, उर्वरक आदि के सही प्रयोग की जानकारी दें ताकि वो फसल के नुक्सान से बच सकें.
- गाँव के बच्चों को अच्छी शिक्षा दी जाये ताकि वे भविष्य में अनेक अन्य कार्य कर कमाई के अन्य स्त्रोत खोल सकें जैसे, कृषि के साथ-साथ पशुपालन, डेयरी, सोया व्यवसाय, दही और पनीर आदि की फैक्ट्री डाल सकें.
- देश के युवाओं में स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने हेतु आवश्यक धन की व्यवस्था करें और कौशल निखारने हेतु रोजगारमूलक कार्यक्रम चलायें.
- छोटे-बड़े, सफल-असफल का भेद मन से दूर करें ताकि लोगों मे विषम परिस्तिथियों में तनाव न उपजे और देश सामाजिक उथल-पुथल से बच जाये.
- नेता अपनी तनख्वाह बढ़ाने की बजाये अपने खर्च में कटौती करें और प्रण ले कि भ्रष्टाचार ख़त्म करेंगे जिससे काली कमाई देश की जनता का जीवन न बर्बाद कर सके. जमीन और मकानों के दाम अनाप-शनाप न बढ़ें.
- जमाखोरी, कालाबाजारी और भ्रष्टाचार देशद्रोह घोषित किये जाएँ.
- पाश्चात्य शैली छोड़कर भारतीय जीवन शैली अपनाएं. इस प्रकार आप भौतिकता से दूर सादा जीवन जियेंगे जिससे खर्चे काबू में रहेंगे और ऐसे महंगाई के दौर में कर्ज नहीं बढेगा.
- मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर मजदूरी तय करें.
- सादा जीवन अन्य लोगों के लिए भी आदर्श बनेगा जिससे सामाजिक विषमता जीवनयापन स्तर पर सामान रहेगी.
- रोजगार के एकाधिक रास्ते अपनाएं ताकि आय के एक ही स्त्रोत पर पूरा भार ना पड़े.
महंगाई घटना एक अकेले देश के बस की बात नहीं परन्तु अपने देश के हित के लिए नीतियाँ बनाना प्रत्येक शासन का परम धर्म है. नीतियाँ ऐसी बने कि केवल बड़े उद्योगपति ही नहीं अपितु, गाँव में बैठा एक किसान भी तरक्की करे, केवल देश की जीडीपी ही नहीं अपितु एक आम गृहिणी के सपने भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्तिथि दर्ज करा सकें. यह असंभव या काल्पनिक नहीं है, चीन ऐसा ही देश है जो केवल कागजों में ही नहीं अपितु देश के हर घर में तरक्की कर रहा है. चीन की जनसँख्या हमसे भी ज्यादा है, उसकी तरक्की आर्थिक और सामरिक स्तर पर हमसे ज्यादा है. चीन ने अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा(१.७ ट्रिलियन $) देश में नवीकरण ऊर्जा के स्त्रोतों की तरक्की पर खर्च किया है जोकी आने वाले समय की अच्छी तैयारी है. चीन के घर-घर में खिलौना फक्ट्रियां हैं जिससे वे पूरी दुनिया के बाजार में राज कर रहे हैं. भारतीय बस सही नीतियों की उम्मीद सरकार से करते हैं ताकि वे विश्व के सामने प्रस्तुत समस्याओं से अपने दम पर लड़ सकें. इसी प्रकार कर सकेंगे हम महंगाई के असर को बेअसर.
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